Wednesday, August 14, 2013

हमें यह देश है प्यारा

हमें यह देश है प्यारा
जो तीनो लोकों में न्यारा
हम इसकी रक्षा कि खातिर
कौमें-धर्म हटा देंगे
मगर
बुरा जो भारत के बारे में
यदि किसी शख्स ने सोचा
हम इस सारी दुनिया से
उसकी हस्ती मिटा देंगे 
-कुमार अनेकान्त (1991)

Thursday, June 20, 2013

he kedarnaath

मैंने पूछा
हे केदारनाथ !
भक्तों का
क्यों नहीं
दिया साथ ?
खुद का धाम बचा कर
सबको
कर दिया अनाथ |
वे बोले
मैं सिर्फ मूर्ती
या मंदिर में नहीं
पृथ्वी के कण कण में
बसता हूँ
हर पेड़ हर पत्ती
हर जीव हर जंतु
तुम्हारे
हर किन्तु हर परन्तु
में 
 हर साँस में हर हवा में
हर दर्द में हर दुआ में

में बसा हूँ
तुमने प्रकृति को बहुत छेडा
पेड़ों को काटा पहाड़ों को तोड़ा
मुर्गी के खाए अंडे
कमजोरों को मारे डंडे
खाया पशु पक्षियों का मांस
मेरी हर बार तोड़ी साँस

फिर आ गए मेरे दरबार
मेरा अपमान करके
मेरी मूर्ति का किया सत्कार

हे मूर्ति में भगवान को समेटने वालों
संभल जाओ अधर्म को धर्म कहने वालों
मेरी करते हो हिंसा और फिर पूजा
अहिंसा से बढ़ कर नहीं धर्म दूजा

मेरे नाम पर अधर्म करोगे
तो ऐसा ही होगा
दूसरे जीवों को अनाथ करोगे
मंजर इससे भीषण होगा |
-कुमार अनेकान्त
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Tuesday, June 18, 2013

खुद से बेखबर


कभी अपना सा होकर तो छलको


dhyan ke kshan ध्यान के क्षण


खुद का चारित्र

वास्तव में हम कैसे हैं?
जैसा एकांत में
अकेले
हम खुद को पाते हैं
अकेले रहते हुए
जो अच्छे बुरे विचार
दिल में आते हैं
हम खुद का
सही चरित्र
तभी पहचान पाते  है
दूसरों को धोखे में
रख सकते हैं
पर खुद को ?
सच है
अकेले में ही
हम खुद की सच्चाई
भांप पाते हैं
हम कैसे हैं
हम से ज्यादा
कौन जान पाते  हैं ?
           -कुमार अनेकान्त  

Thursday, June 6, 2013

दया का पात्र

भड़काने वाले से ज्यादा दया का पात्र वो है जो भडकता है -कुमार अनेकान्त

Wednesday, February 20, 2013

धर्म /संप्रदाय की समीक्षा

दूसरे के धर्म /संप्रदाय की समीक्षा करते वक्त हम जितने यथार्थवादी हो जाते हैं उतने यथार्थवादी यदि अपने धर्म/संप्रदाय  की समीक्षा में हो जाएँ तो शायद हम सत्य को जान पायें | -कुमार अनेकान्त

Sunday, February 17, 2013

कथनी करनी


रास्ते की ईंट


रिश्तों का आधार


रोटी और प्यार


सच्चा प्यार


धर्म


अस्तित्व


असफलता भी स्वीकार


दूरी


जीना भी एक कला है


लूडो


मैं देखता हूँ


धार्मिक कौन ?


झूठ की कीमत


करोड़पति


महान


वेलेन्टाइन डे




सहजता ही प्रेम है


Wednesday, January 9, 2013

संत या फिर अंत



    संत या फिर अंत
        कुमार अनेकान्त

जब भारत से ही उठ जायेगा संतों का सम्मान
तब फिर कौन कहेगा इसको राष्ट्र महान

माया के भी राज में हुआ था संतों का अपमान
राज पाट सब गया अटके सी.बी.आई में प्राण

नरेन्द्र मोदी जीते बहुमत से हुए हैं शहंशाह
जिनके वर से जीते कर लो उनकी भी परवाह

नए साल में हुआ है गुजरात में संतों पर हमला
ऐसा अशुभ संकेत ना कर दे सरकार को कंगला

लोकपाल की नियुक्ति से ही शुरुआत हो गई है
पी एम् के सपने में भी सेंध लग गई है

देखो कुंडली का राज योग भी बदल जाता है
कब  दिन फिर जायें,पुण्य नष्ट हो जाता है

संतों के खून से कभी सिंहासन ना बनते हैं
जो आकाश में उड़े वो धरती पर भी गिरते हैं

अभी वक्त है मांगो माफ़ी,बचाओ अपनी शान
कड़ी कार्यवाही से कर दो दोषियों को नाकाम

कह दो गुजरात में हर संत उन्मुक्त विचरेगा
काट देगा मोदी वो हाथ जो संतों पर उठेगा