Thursday, June 20, 2013

he kedarnaath

मैंने पूछा
हे केदारनाथ !
भक्तों का
क्यों नहीं
दिया साथ ?
खुद का धाम बचा कर
सबको
कर दिया अनाथ |
वे बोले
मैं सिर्फ मूर्ती
या मंदिर में नहीं
पृथ्वी के कण कण में
बसता हूँ
हर पेड़ हर पत्ती
हर जीव हर जंतु
तुम्हारे
हर किन्तु हर परन्तु
में 
 हर साँस में हर हवा में
हर दर्द में हर दुआ में

में बसा हूँ
तुमने प्रकृति को बहुत छेडा
पेड़ों को काटा पहाड़ों को तोड़ा
मुर्गी के खाए अंडे
कमजोरों को मारे डंडे
खाया पशु पक्षियों का मांस
मेरी हर बार तोड़ी साँस

फिर आ गए मेरे दरबार
मेरा अपमान करके
मेरी मूर्ति का किया सत्कार

हे मूर्ति में भगवान को समेटने वालों
संभल जाओ अधर्म को धर्म कहने वालों
मेरी करते हो हिंसा और फिर पूजा
अहिंसा से बढ़ कर नहीं धर्म दूजा

मेरे नाम पर अधर्म करोगे
तो ऐसा ही होगा
दूसरे जीवों को अनाथ करोगे
मंजर इससे भीषण होगा |
-कुमार अनेकान्त
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Tuesday, June 18, 2013

खुद से बेखबर


कभी अपना सा होकर तो छलको


dhyan ke kshan ध्यान के क्षण


खुद का चारित्र

वास्तव में हम कैसे हैं?
जैसा एकांत में
अकेले
हम खुद को पाते हैं
अकेले रहते हुए
जो अच्छे बुरे विचार
दिल में आते हैं
हम खुद का
सही चरित्र
तभी पहचान पाते  है
दूसरों को धोखे में
रख सकते हैं
पर खुद को ?
सच है
अकेले में ही
हम खुद की सच्चाई
भांप पाते हैं
हम कैसे हैं
हम से ज्यादा
कौन जान पाते  हैं ?
           -कुमार अनेकान्त  

Thursday, June 6, 2013

दया का पात्र

भड़काने वाले से ज्यादा दया का पात्र वो है जो भडकता है -कुमार अनेकान्त