Sunday, December 13, 2015

जब नहीं था प्रिये,----------

जब इन्टरनेट नहीं था प्रिये


-कुमार अनेकान्त


जब इन्टरनेट नहीं था प्रिये
लोग कैसे जीवन जीते थे  ?
बिना फोन फेसबुक के
अपनी अभिव्यक्ति करते थे?




बच्चे कैसे करते थे होमवर्क ?
कैसे प्रोजेक्ट, असाइन्मेंट होता था ?
बिना पावर प्वाइन्ट के प्रिये
कैसे टीचर लेक्चर देता था ?




बिन शादी.com के  प्रिये ?
रिश्ता कैसे होता था ?
बिना फ्रेन्ड रिक्वेस्ट को भेजे
क्यों कोई अन्जान से मिलता था ?




आज भी ऐसे हैं लोग प्रिये
जो बिन बोले भी बतिया लेते हैं।
मुस्कुराते लबों के पीछे भी
छुपे दर्द को भांप लेते हैं ।।




जिन्दगी वर्चुअल खत्म Actual
हम तो उस युग में जीते हैं ।
लाइट नहीं तो लाइफ नहीं,
इस भ्रम ट्री को सीचते हैं।।

Saturday, November 28, 2015

असहिष्णु

उसने मुझे
असहिष्णु कहा                
फिर उस पर                   
मेरी तीखी प्रतिक्रिया ने                           
उसके कथन को                   सिद्ध भी कर दिया।                      


-कुमार अनेकान्त

Thursday, April 23, 2015

काश विकास की कुछ ऐसी फिज़ा बने

काश विकास की कुछ ऐसी फिज़ा बने
कोल्ड्रिंकवाले  करें खुदखुशी
और
किसान वन डे का प्रायोजक बने
हमारा बेटा एम् बी ए छोड़कर
खेती करे
शादी को लड़कियां डॉक्टर इंजीनिअर
दुत्कारें
और युवा किसान पर फिदा हों
कृषि प्रधान मुल्क में
काश ऐसी बयांर हो ?
                  -कुमार अनेकांत