Wednesday, October 3, 2018

क्षमा करेंगे तो मिलेगी

क्षमा करेंगे तो मिलेगी

- कुमार अनेकान्त

हम दूसरों को वही दे सकते हैं
जो हमारे पास है .....
क्रोध,घृणा,ईर्ष्या,क्रूरता   
                   या         
क्षमा, करुणा,दया ,प्रेम
  और
जो दे सकते है
वही वापस लेने का भी
अधिकार रखते हैं
इसलिए
गेंद दीवार पर हम
उतने ही वेग से फेंकें
जितने वेग से हम
वापस उसे झेल सकें

क्षमा करेंगे तो मिलेगी

Monday, September 10, 2018

हमें जमाने के दस्तूर में जीना नहीं आया



हमें जमाने के दस्तूर में जीना नहीं आया

- कुमार अनेकान्त

कभी झूठी बातें बनाना नहीं आया
जब काम पड़े तब पटाना नहीं आया
हम हक़ीक़त के ही कायल रहे हरदम
स्वार्थ में लोगों को फंसाना नहीं आया

वो फ़रेब के इतिहास बनाता ही चला गया
हम ठगे गए ,हमें ये भी बताना नहीं आया
जिनका पता है दोहरा चरित्र साफ साफ
मुख पर उनकी तारीफ़ करना नहीं आया

अपमान का एक घूंट भी पीना नहीं आया
गलत देख चुपचाप ही सहना नहीं आया
दिखा देते हैं उसे नाराजगी नाराज हैं जिससे
रूठकर भी मुस्कुराकर मिलना नहीं आया

अध्यात्म की दुनिया में भी चलता है दिखावा
देखा बहुत अभी तक समझ में नहीं आया
नसीहतें हैं कि चलो तुम भी उनके उसूलों पर
हमें जमाने के दस्तूर में जीना नहीं आया

Thursday, July 19, 2018

प्रस्ताव और अविश्वास

याद है
एक बार
दिल की संसद में
मेरे प्रस्ताव पर
तुमने भी अविश्वास
जताया था
पर
सरकार तुम्हारी गिर गयी थी
तभी से आज
हम अपनी
स्वतः सिद्ध सत्ता
के स्थायी प्रधानमंत्री हैं
और तुम सिर्फ बेसहारा मतदाता
तुम्हारे अविश्वास का
धन्यवाद
-Kumar Anekant

Wednesday, July 18, 2018

नींद

हम हमेशा तुमसे परेशान ही रहे
पहले तेरी अति से
अब तेरी इति से
हे ! नींद

Monday, June 25, 2018

क्षणिकाएं

*क्षणिकाएं*

-कुमार अनेकान्त

*बोली*

हम लगवाएं
तो धर्म
दूसरे लगवाएं
तो व्यवसाय

*दान*

हमें दो
तो पुण्य
उन्हें दो
तो पाप

*सम्यग्दर्शन*

हमें मानो
तो सम्यग्दृष्टि
अन्य को मानो
तो मिथ्यादृष्टि

*पुण्य-पाप*

हम कुछ भी करें
वो पुण्य
तुम कुछ भी करो
वो पाप

धर्म-अधर्म का आधार
कब का डूब मरा
खरा सो मेरा
नहीं ,अब
मेरा सो खरा

Sunday, June 24, 2018

पुनर्स्थापन

बुझ गयी अंदर की आग
अब न दीवाली है न फाग
डूबे हैं  बदरंगी दुनिया में
न राग ढंग से और न विराग

तूने कुंठाओं से था उबारा
हर पल दिया था पुनर्जन्म
हो कृतघ्न तुझको ही भूले
अब प्रायश्चित्त का है प्रसंग

कृत्रिम हो गया है जीवन
न प्रेम बचा न शेष धर्म
काव्यनीर जीवन उसका
पुनः सिंचित हो काव्यकर्म

औषधि थी यह काव्यकला
रोग जब हो गया दूर
त्याग औषधि वैद्य को तब
राग रंग में हुआ मशगूल

छेदोपस्थापन आज हुआ है
जीवित हो रहा अनेकान्त
मां सरस्वती की हो कृपा
अरमान पूरे हों दो वरदान

- कुमार अनेकान्त

पुराने दिन

आज छात्र जीवन के एक अनन्य मित्र से मुलाकात हुई तो पुराने दिन याद आ गए । कविता लिखना छूट गया कहा तो वो गुस्सा हो गया और जिद करके ये पंक्तियां लिखवा गया ........................

याद करें उन मधुर पलों को
जब दिल खोल के जीवन जीते थे

न थी कोई जिम्मेदारी
अपनी दुनिया में रहते थे
कोई दो पंक्ति भी मांगे तो
लंबा ख़त लिख देते थे

दिमाग से नहीं दिल से सोचा करते थे
प्यार हो या गुस्सा
कहने से नहीं डरते थे

जुनून था और जज़्बा भी
हमेशा कुछ नया करते थे
तोड़ते नहीं थे विश्वास उसका
दोस्ती जिससे करते थे

नादान थे और भावुक भी
खुद के ही नशे में रहते थे
शैतानियां चाहे जितनी करें
साजिशें कभी न करते थे 

जायज़ न लगे कोई बात
तो विरोध खुलकर करते थे
छात्र थे विचारक भी
झूठी दुनिया से न डरते थे

टेंशन देते हों भले बहुत
खुद कभी नहीं लेते थे
कोई सखा हो डिप्रेशन में
गले लगा उसे खुश करते थे

अब वैसा सावन नहीं है
न ही है वो मानवता
दुनिया ढल चुकी नफ़रत में
न ही है वो भावुकता

याद करें उन मधुर पलों को
जब दिल खोल के जीवन जीते थे
खुलकर हँसते खुल कर गाते
नहीं फ़िक्र किसी की करते थे

- कुमार अनेकान्त

Monday, March 26, 2018

तुम्हारे महावीर से अलग है मेरा महावीर


तुम्हारे महावीर से अलग है मेरा महावीर

महावीर को सब याद करते हैं
तुम भी मैं भी
तुम उन्हें इसलिए महावीर मानते हो
क्योंकि बचपन में एक सर्प आने पर
दूसरे बालकों की तरह वे डरे नहीं थे
नगर में हाथी के उपद्रव पर
सब भाग गए थे
लेकिन उन्होंने उसे काबू में कर लिया था |
और भी किस्से – कहानियाँ
हैं उनकी वीरता के
जिस कारण तुम कहते
उन्हें महावीर
मगर मेरे महावीर वह है
जो धर्म के साथ विज्ञान समझाते थे
जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान बतलाते थे
जब पूरी दुनिया ईश्वर को
सृष्टि का कर्त्ता मानती थी
निज पुरुषार्थ भूलकर
भाग्य भरोसे बैठी थी
धर्म के नाम पर
चारों ओर हिंसा फैली थी
अनासक्ति, वैराग्य के नाम पर
बस पाखंडियों की टोली थी
उस समय उनका अभ्युदय
एक दिव्य प्रकाश बना था
मिथ्वात्व दूर भगा कर आत्मा को
कर्मों से मुक्त किया था
खुद का खुदा खुद में ही बसा
ऐसा यथार्थ बताया
भगवान भरोसे बैठी जनता में
आत्मपुरुषार्थ जगाया
वस्त्रों से भी मोह छोड़कर
सच्चे फकीर बने थे
बस तब से ही वो मेरे
सच्चे महावीर बने थे |

 
    - कुमार अनेकांत (AKJ)
drakjain2016@gmail.com

Tuesday, March 13, 2018

अभी जीने का शऊर आया ही नहीं

अभी जीने  का  शऊर  आया ही नहीं,
उन्होंने मरने की इजाज़त दे डाली ।

Thursday, February 15, 2018

वो मुझसे प्यार नहीं करती ? कुमार अनेकान्त

वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

रोज सुबह पांच बजे उठती है
बच्चों का टिफिन बनाती है
और मेरे लिए चाय
अखबार छुपा देती है
ताकि मैं जल्दी नहाकर
मंदिर हो आऊं
जबरजस्ती मॉर्निंग वॉक पर
ले जाती है
मेरा मनपसंद खाना भी नहीं देती है
वो खाना देती है जिससे
वजन न बढ़े और मैं स्वस्थ्य रहूं
मुझे क्या पहनना है
किस रंग का पहनना है
अधिकार पूर्वक तय करती है
विश्वविद्यालय जाते समय
पर्स, मोबाइल,पेन,रुमाल
बैग हाथ में दे देती है
वहाँ पहुंचते ही फ़ोन करती है
अच्छे से पहुंच गए न
लंच के बाद पूछती है
दवा ले ली न
इस बीच कपड़े धो देती है
बाजार से सामान ले आती है
बच्चों को स्कूल से लाती है
शाम को फोन करती है
कब तक पहुंचोगे
शाम के खाने को देर मत करना
घर आते ही पूछती है दिन कैसा रहा ?
मेरी उलझने सुनती है
सुलझाने की कोशिश करती है
कुछ नया लिखने को प्रेरित करती है
कोई महंगी चीज ख़रीदकर दो
तो डांटती है क्या जरूरत थी इतने खर्चे की
दिन भर नाचती है सबकी सेवा में
फोन करती है मगर मां बापू को उनकी खैर पूछने
मुझे एक बार भी आई लव यू नहीं बोलती
मगर कौन कहता है
वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

जो खुद गुलाब है
उसे क्या गुलाब दूं ?
जिसका हर दिन वेलेंटाइन है
उसपर जान कुर्बान दूं ।

-कुमार अनेकान्त