आज छात्र जीवन के एक अनन्य मित्र से मुलाकात हुई तो पुराने दिन याद आ गए । कविता लिखना छूट गया कहा तो वो गुस्सा हो गया और जिद करके ये पंक्तियां लिखवा गया ........................
याद करें उन मधुर पलों को
जब दिल खोल के जीवन जीते थे
न थी कोई जिम्मेदारी
अपनी दुनिया में रहते थे
कोई दो पंक्ति भी मांगे तो
लंबा ख़त लिख देते थे
दिमाग से नहीं दिल से सोचा करते थे
प्यार हो या गुस्सा
कहने से नहीं डरते थे
जुनून था और जज़्बा भी
हमेशा कुछ नया करते थे
तोड़ते नहीं थे विश्वास उसका
दोस्ती जिससे करते थे
नादान थे और भावुक भी
खुद के ही नशे में रहते थे
शैतानियां चाहे जितनी करें
साजिशें कभी न करते थे
जायज़ न लगे कोई बात
तो विरोध खुलकर करते थे
छात्र थे विचारक भी
झूठी दुनिया से न डरते थे
टेंशन देते हों भले बहुत
खुद कभी नहीं लेते थे
कोई सखा हो डिप्रेशन में
गले लगा उसे खुश करते थे
अब वैसा सावन नहीं है
न ही है वो मानवता
दुनिया ढल चुकी नफ़रत में
न ही है वो भावुकता
याद करें उन मधुर पलों को
जब दिल खोल के जीवन जीते थे
खुलकर हँसते खुल कर गाते
नहीं फ़िक्र किसी की करते थे
- कुमार अनेकान्त
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