Sunday, December 25, 2016

तुम अपना बस मतलब साधो काम बना लो

बिखरे सपनों का ढेर पड़ा है मजे उड़ा लो
और कुछ रातें जगी खड़ी हैं उन्हें सुला लो

टूटे अरमानों पर उनके महल खड़े हैं
तुम खुशियों की उनमें बरात सजा लो

मेरी मजबूरी पर लब उनके मुस्काते हैं
इस दिल से जब भी चाहो मन बहला लो

जीते हरदम लेकिन तेरे घर हारे हैं
तुम जीतों के रंगबिरंगे जश्न मना लो

कोई नहीं साथ तुम्हारे 'अनेकांत' यहाँ पर
उनकी महफ़िल भंग न हो इंतजाम करा लो

रोये चाहे कोई कहीं पर उससे तुमको क्या
तुम अपना बस मतलब साधो काम बना लो

                                                       - (c) कुमार अनेकांत

सभी को माफ़ कर दें

आज दिल के रंजोगम चलो मिलकर साफ़ कर दें
जियेंगे कब तक घुटन में अब सभी को माफ़ कर दें
मांग लें माफ़ी गुनाहों की जो अबतक हमने  किये
अब नहीं कोई शिकायत दुनिया को ये साफ़ कर दें
 -डॉ० अनेकांत



Wednesday, February 3, 2016

साजिशें - कुमार अनेकांत

मुस्कुरा के मिलते हैं पालते हैं रंजिशें ,       
दौरे जहां में कैसी स्वार्थ की हैं बंदिशें ?
            
रोज सौगातों की भी कैसी हो रही हैं साजिशें।                                          
भीगता कुछ है नहीं और हो रही हैं बारिशें।।