Friday, January 29, 2021

तित्थयर-महावीरस्स गणतंतं (तीर्थंकर महावीर का गणतंत्र )

 तित्थयर-महावीरस्स गणतंतं

(तीर्थंकर महावीर का गणतंत्र )

पढमे खलु गणतंते वेसालीए होही जस्स जम्मं |

धम्मदंसणे ठवीअ वि गणतंतं भगवओ वीरो ||१||

निश्चय ही विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में जिनका जन्म हुआ उन भगवान् महावीर ने धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी गणतंत्र की स्थापना की |

अप्पा सो परमप्पा णत्थि कोवि एगो इस्सवरो लोए |

णत्थि कोवि कत्ता खलु ,लोअस्स य केवलं णाया ||२||

उन्होंने कहा कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है ,लोक में कोई एक ईश्वर नहीं है ,निश्चित ही इस लोक का कोई भी कर्त्ता नहीं है और वह परमात्मा केवल ज्ञाता (दृष्टा) है |

जीवसयमेव कत्ता,सुहदुक्खाणं य सयं कम्माणं |

सव्वकम्मनस्सिदूण, भत्तो वि भगवओ हवइ ||३||

उन्होंने समझाया कि अपने सुख-दुखों का और अपने कर्मों का जीव स्वयमेव कर्त्ता है, अपने सभी कर्मों का नाश करके भक्त भी भगवान् हो जाता है |

- कुमार अनेकांत
२६/०१/२०२१

Wednesday, January 20, 2021

समकालीन प्राकृत कविता 24 डिजिटल सिक्खा

सिक्खा कीरइ अंधो, डिजिटलो अंधयारो य सव्वत्थ ।

डाऊणलोडो ण होदि, रोट्टगो
गुगलत्तो कया ।।

भावार्थ 
सब तरफ डिजिटल अंधकार फैल गया है और ऑनलाइन शिक्षा विद्यार्थियों को अंधा कर रही है ।इन्हें कौन समझाए कि कितना भी कर लो रोटी गूगल से डाउन लोड नहीं होती ।
20/01/2021

समकालीन प्राकृत कविता 23(मुग्गस्स अप्पकहा )

*मुग्गस्स अप्पकहा*
( मुर्गे की आत्मकथा )

मम य णत्थि मरणभयं,वड्डफ्फुसंकमणं जदि भविस्सदि ।
पालणं मारणत्थं,
सामिसा य हरन्ति जीवणं ।।


भावार्थ - 

मुझे बर्डफ्लू संक्रमण यदि हो जाएगा तो भी मरण से भय नहीं है,(क्यों कि)
हमारा तो पालन भी मारण के लिए ही किया जाता है और मांसाहारी लोग हमारा जीवन हरण कर लेते हैं ।
अनेकान्त
10/1/2021

Friday, January 15, 2021

समकालीन प्राकृत कविता 22 उपयोग की पतंग

सगोवओयपतंगं , ताव उड्डेइ अज्झप्पागासे ।
जाव खलु तस्स डोरा,
संजुत्तो जइ सग अप्पणा ।।

अपने उपयोग(चैतन्य) की पतंग अध्यात्म के आकाश में तब तक सही उड़ती है जब तक डोर खुद से जुड़ी हो ।
टूटी डोर की पतंग स्वछंद होकर कहाँ गिरती है? कितना गिरती है ? कौन सी वासना उसे लूट लेती है पता ही नहीं चलता ।

- कुमार अनेकान्त
14/1/2021
makar sankranti

Friday, January 8, 2021

जिणधम्मो

जत्थत्थि अणेयंतं ,सियवायं
सुणयं रयणत्तयं य ।

अहिंसा संजमजत्थ,  तत्थ खलु होई जिणधम्मो ।।

जहां अनेकान्त है,स्याद्वाद है,सुनय है,रत्नत्रय है,अहिंसा है और संयम है,निश्चित रूप से वहीं जिन धर्म है ।