बिखरे सपनों का ढेर पड़ा है मजे उड़ा लो
और कुछ रातें जगी खड़ी हैं उन्हें सुला लो
टूटे अरमानों पर उनके महल खड़े हैं
तुम खुशियों की उनमें बरात सजा लो
मेरी मजबूरी पर लब उनके मुस्काते हैं
इस दिल से जब भी चाहो मन बहला लो
जीते हरदम लेकिन तेरे घर हारे हैं
तुम जीतों के रंगबिरंगे जश्न मना लो
कोई नहीं साथ तुम्हारे 'अनेकांत' यहाँ पर
उनकी महफ़िल भंग न हो इंतजाम करा लो
रोये चाहे कोई कहीं पर उससे तुमको क्या
तुम अपना बस मतलब साधो काम बना लो
- (c) कुमार अनेकांत
और कुछ रातें जगी खड़ी हैं उन्हें सुला लो
टूटे अरमानों पर उनके महल खड़े हैं
तुम खुशियों की उनमें बरात सजा लो
मेरी मजबूरी पर लब उनके मुस्काते हैं
इस दिल से जब भी चाहो मन बहला लो
जीते हरदम लेकिन तेरे घर हारे हैं
तुम जीतों के रंगबिरंगे जश्न मना लो
कोई नहीं साथ तुम्हारे 'अनेकांत' यहाँ पर
उनकी महफ़िल भंग न हो इंतजाम करा लो
रोये चाहे कोई कहीं पर उससे तुमको क्या
तुम अपना बस मतलब साधो काम बना लो
- (c) कुमार अनेकांत