कुमार अनेकान्त की कवितायें
Wednesday, March 30, 2022
बंदों की बंदगी
ख़ुश होकर भी कौन सा निहाल करते हो,
क्यों वक्त जाया करें तुम्हें रिझाने के लिए ।
गुनाह ही है बन्दों की बंदगी हर पल ,
कुछ शख्स जीते ही हैं नाराजगी के लिए ।।
-कुमार अनेकांत
Wednesday, March 23, 2022
तस्वीर
तस्वीर कुछ ऐसी भी बनायी जाये ,
न रहें हम तो हमारी शक्ल भी जानी जाये |
कागजो के चित्र तो ख़त्म हो ही जाते हैं,
जो बसे नजरों में वो न भुलाये जाएँ ||
-कुमार अनेकांत(2015)
Friday, March 18, 2022
आगे बढ़ो
आगे बढ़ो
किताबों को पढ़ो
उनसे समझो
लेकिन
उसमें मत उलझो
उनमें अटको भी मत
और भटको भी मत
वो दूसरों के अनुभवों का गठ्ठर है
उनसे सीखो लेकिन
उन्हें ढोओ मत
क्यों कि तुम्हारा सच
तुम्हारी ही अनुभूतियों से निकलेगा
इसलिए उन्हें पढ़ो
उनसे लड़ो
और आगे बढ़ो।
- कुमार अनेकान्त १८/०३/२०१६
Wednesday, March 9, 2022
अब की होली किससे मिलो ?
*अब की होली किससे मिलो ?*
उनसे बहुत काम है ,
इसलिए बना के चलो ।
कल को कोई काम पड़े ,
इसलिए निभा के चलो ।
वे कोई काम न बिगाड़ें ,
इसलिए मिल के चलो ।
वे कहीं नाराज़ न हों ,
इसलिए झुक के चलो ।
ये क्या बिगाड़ लेंगे मेरा ?
इनसे क्यों मिल के चलो ?
ये क्या बना देंगे मेरा ?
क्यों बे वजह इनसे
मिलो ?
ये तो सच्चे सीधे हैं ,
मैसेज से ही मान
जाएंगे ।
होली दीवाली उपहार लेकर ,
क्यों
इनसे मिलो ?
उनसे मिलते हैं हर साल ,
उन्हें खुश करने के लिए ।
मगर
अबकी होली
खुश
होने के लिए,
एक बार
हम से मिलो ।।
कुमार अनेकांत ©
१०मार्च २०२०
नई दिल्ली
Tuesday, March 8, 2022
पवित्र भाव
पवित्रभाव हैं सो लेखनी देती कछु लिखाय ,
अर्थ निकालें लोग सब जिसकी जितनी कसाय ।
जिसकी जितनी कसाय कि कछु भावना न समझें ,
है पंचम काल को दोस,मति कछु एसई समझें ।।
कुमार अनेकान्त
9/3/2021
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