Tuesday, July 23, 2019

अपनाष्टक

*अपनाष्टक*

दुख की काली बदली छायी,
न खुशियों की कोई बात है ।
अवसाद भरी इस महफिल में ,
अब हर कोई नाराज़ है ।।१।।

मन अच्छा हो तो हम ढूढें,
रोज बहाने मिलने के ।
मन कच्चा हो तो हम ढूढें,
रोज बहानें लड़ने के ।।२।।

छोटी छोटी बातों में ,
तिल का ताड़ बनाते हम ।
व्यर्थ सभी अध्यात्म है दिखता,
यदि साथ नहीं रह पाते हम ।।३।।

अपनों को विस्मृत करके हम ,
औरों को गले लगाते हैं ।
उनसे मिलते मुस्काते हैं ,
बस अपनों में छल दिखलाते हैं ।।४।।

अपना ही है प्रतिद्वंद्वी ,
गैर सहयोगी दिखते हैं ।
अपने ठगे जाते हैं अब तो ,
गैर ही मजे उड़ाते हैं ।।५।।
भाग्य बंधा है जिनसे अपना ,
कैसे भी उनसे बोलो तुम ।
संवादों को जारी रखो,
उसकी भूलों को भूलो तुम ।।६।।

कल तक जो था जान छिड़कता ,
अचानक क्यों बेरुखा
दिखता है ?
कुछ तो मजबूरी का मारा होगा ,
वरना क्यों बेवफा लगता है ?।। ७ ।।

है खुद से ही परेशान सजन वो ,
और बदला तुमसे लेता है  ।
जब हार जाता है इंसा दुनिया से ,
विक्षिप्त अपनों को करता है ।।८।।

पर में अपनापन करके ही ,
हम संतुष्ट हो लेते हैं ।
अपन, अपने को करके विस्मृत ,
हम अपने को छलते हैं ।।

  -  कुमार अनेकांत
२४/०७/२०१९

चाहो तो ......

चाहो तो ......

चाहो तो
बह भी सकते हो
चाहो तो तैर भी
सकते हो
वक्त एक
नदी की धार
जैसा है
हमारे पूर्व कर्मों के
फलों की
कतार जैसा है

बहोगे तो वही होगा
जो तकदीर में होगा
तैरोगे तो तकदीर
लिख भी सकते हो

भुजाओं में हो ताकत
तो लड़ भी सकते हो
धारा से बगावत
कर भी सकते हो

बहाव तेज हो तो
बहाता है
अच्छे अच्छों को
मगर लड़ता है मनुज
यह मानकर कि
तुम धारा मोड़ सकते हो

चाहो तो भरोसे
बहाव के
खुद को छोड़ सकते हो
और चाहो तो
खुद ये बंधन
तोड़ सकते हो

     - कुमार अनेकांत©
२३/०७/२०१९

Saturday, July 13, 2019

संसार

संसार
कभी नीचे से आकाश
देखो तो कितना बड़ा
नजर आता है !

किसी ऊंची जगह से
नीचे देखो तो सबकुछ
कितना छोटा
नजर आता है !
यह मनुष्य भव
कितना सा ?
ज्यादा से ज्यादा
९०- १०० वर्ष ?

अगणित वर्ष की आयु
देव और नरक गति
में बिताने के बाद भी
हम इन ७०/८० या
१०० वर्षों को कितना
ज्यादा महत्त्व देते हैं ?
इन्हीं वर्षों में खूब
राग द्वेष और बदला ,
इसने मेरा ये ले लिया
इसने मुझे ये नहीं दिया
मुझे ये बनना है
वो बनना है
इसको हराना है
उसको पाना है
इतना कमाना है
यहां घूमना है
वहां घूमना है
तृप्त ही नहीं होती
आशाएं
जो आकाश से भी
बड़ी हैं
ऊपर से देखो तो
सब कुछ बौना
नजर आता है
जमीं पर रहकर देखो
बस संसार
नज़र आता है
इसी भव में ही
सार नज़र आता है
- कुमार अनेकांत ©
८/७/२०१९

Wednesday, July 10, 2019

गुरु जी

*EVER G - GURU G*  

2G आया गया
3G आया गया
4G आया जाएगा
5G आएगा जाएगा
पर
गुरु G हमेशा थे
हमेशा रहेंगे
इसलिए
गुरू P अर्थात्
पूर्णिमा पर
उन सभी गुरू जी
को नमन
जिन्होंने हम
पत्थरों को
तराशा
गढ़ा
आकार दिया
और कर्तृत्व का
ज़रा सा भी
भार नहीं लिया
- कुमार अनेकांत©

*EVER G - GURU G*

Monday, July 1, 2019

परिवार वाद

परिवार वाद

सभी जगह
परिवारवाद
किसी का खुद का परिवार ही परिवार
किसी का संघ
परिवार ही परिवार  किन्हीं की जाति ही उनका परिवार
किसी के लिए उनका धर्म और साधर्मी ही परिवार किसी के लिए उनकी खुद की समाज ही परिवार 

पर ऐसे शायद ही मिलें जिनके लिए पूरा देश परिवार
सबसे बड़ी विशाल दृष्टि में वसुधा ही कुटुंब यानि परिवार

इसलिए
परिवार वाद  नहीं
परिवार का
सीमाकरण अखरता है