Sunday, December 18, 2022

आफ़ताब

खुद में वो काबिलियत पैदा करो ,
कि मंजिलें खुद मिलने को बेताब हों ।
क्या होगा तारों सा बन के अनेकान्त,
कुछ करो ऐसा कि जैसे आफ़ताब हो ।।
- कुमार अनेकान्त 

Thursday, November 24, 2022

इबादत गाह बनाम सैरगाह

सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह ।
वहाँ हम इबादत को जाते हैं सैर को नहीं ।।

©कुमार अनेकान्त
24/11/22

#saveshikharji

Monday, November 21, 2022

उसे प्यार नहीं भाया जिहाद भा गया



*उसे प्यार नहीं भाया जिहाद भा गया*

© कुमार अनेकान्त

उसे नमस्ते न भाया आदाब भा गया ।
धर्म की कीमत पर भी कबाब भा गया ।।

हम मदहोश ही रहे ,ऊंची नीची जात में ।
मेरे धर्म की कन्या को,आफ़ताब भा गया ।।

श्याम नहीं दिखा ,रहमान भा गया ।
राम नहीं दिखा ,सलमान भा गया ।।

हम कदमों में जान, बिछाए खड़े रहे ।
प्यार नहीं दिखा ,
इश्क ए फ़रमान भा गया ।।

उतरा जब भूत फ़रेब इश्क का ,
याद कुंडली मिलान आ गया ।
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,
हिंदी फिल्म का याद गान आ गया ।।

प्यार से भी जरूरी कई काम है ,
माँ बाप का याद वो एहसान आ गया ।
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए ,
इस इल्म से पहले काम तमाम हो गया 
।।

© कुमार अनेकान्त
22/11/2022

आफ़ताब द्वारा श्रद्धा हत्याकांड 

Monday, October 24, 2022

बधाई या विज्ञापन

दिवाली पर
उनकी एक लाइन की शुभकामना
और साथ में दुकान का ,फैक्ट्री का और कंपनी का,पार्टी का इतना बड़ा ज्ञापन 
समझ नहीं आ रहा

बधाई है या विज्ञापन ? 

- कुमार अनेकान्त

Sunday, October 23, 2022

मिलते जुलते रहा करो


भूलो कड़वी पुरानी बातें
अब इतना भी न गिला करो 
होली दीवाली के ही बहाने 
मिलते जुलते रहा करो 

फट जाए यदि उसका हृदय 
नेह सूत्र से सिला करो 
हाल पूछने के ही बहाने 
मिलते जुलते रहा करो 

रूठे यदि तुम भी तो बोलो 
जोड़ेगा फिर कौन उसे ?
जिल्लत सहकर भी 'अनेकान्त'
उसके संग खड़े रहा करो 

 - कुमार अनेकान्त©


Tuesday, October 18, 2022

खुदकुशी

खुदकुशी

 - कुमार अनेकान्त ©

दिमाग को जाने क्यों अपनों से ही गिला है ।
कि दायाँ हाथ बाएं को काटने पे तुला है ।।

शजर खुद की शाखा से करे मुखालिफत ।
नादान अपनी ही जड़ खोदने पे तुला है ।।

बुजुर्ग बुरा वक्त इसे ही तो कहते आये हैं ।
लड़ें अपनों से जब दुश्मन सामने खड़ा है ।।

ये भी तो बुरे वक्त की दस्तक ही समझिए ।
जब आफ़रीं का लब भी गाली से खुला है ।।

Monday, September 26, 2022

बांध

किस्मत ने लिखे हैं कैसे कैसे रूप  ,
तदबीरें भी जिसकी गुलाम हो गईं ।
जाने कैसे रोका है उसने सैलाब को, 
आंखें भी आसुओं का बांध हो गईं ।।

कुमार अनेकान्त ©

Saturday, September 10, 2022

औपचारिक क्षमावाणी

*औपचारिक क्षमावाणी* 

         ✍️- कुमार अनेकान्त
               11/09/2022

वे हमपर ज़ुल्म तक करते रहे 
और हमने उफ़ तक न किया 
हमने बस आह भरी
तो वे बुरा मान गए 

उनका पढ़कर क्षमा संदेश 
व्हाट्सप्प पर 
हम भावुकता में फिर उनके 
दीवाने हो गए 

हम भी मांगे मुआफी 
ये मुद्द'आ था उनका 
हमने 'क्षमा किया' लिख दिया
तो नाराज हो गए

Friday, August 26, 2022

सम्यक्त्व की शक्ति

*एगं सम्मत्तं  घेतव्वं*

ण भावइ मोक्खपयं,
सो वि लहइ य मोक्खं सद्दिट्ठी ।
सो सम्मत्तस्स सत्ति
एगं सम्मत्तं  घेतव्वं ।।

सम्यक्त्व की इतनी शक्ति है कि 
सम्यग्दृष्टि मोक्ष पद न चाहे तो भी उसे वह जबरजस्ती मिलता है इसलिए एक मात्र सम्यकदर्शन को ग्रहण करना चाहिए । 

पर्युषण-
दसलक्षण पर्व की शुभकामनाओं के साथ 

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली 
27/08/2022

Tuesday, August 9, 2022

स्वतंत्रता का अमृतमहोत्सव

अमियमहोस्सवे जण मणगणसगतंतस्स अइउमंगो।
सुसोहिओ णवभरहे,गेहे गेहे णव तिरंगो ।।

आज
स्वतंत्रता के अमृतमहोत्सव पर नए भारत के जन मन गण में अति उमंग है और यहां के घर घर में तिरंगा सुशोभित हो रहा है ।

- कुमार अनेकान्त 

Monday, May 16, 2022

खुदाई का हर पत्थर बोलेगा

*खुदाई का हर पत्थर बोलेगा*

दबा ले कोई कितना भी 
एक रोज़ उभर के निकलेगा 
शासन था जिनेन्द्र का 
खुदाई का हर पत्थर बोलेगा 

तीर्थ जो हैं संभलते नहीं 
नए को कौन संभालेगा ?
जैन हैं मुट्ठीभर बिखरे से 
हड़पे को कौन निकालेगा ?

उलझे पंथों के झगड़े में 
अस्तित्व कौन बचाएगा ?
कुल्हाड़ी अपने ही पैरों पर 
गर मारे तो कहाँ जायेगा ? 

चेतन हो गए गर जड़ ,
तो मोक्ष कौन जाएगा ?
निठल्ले हों गर पूत 
तो धर्म कौन बचाएगा ? 

©कुमार अनेकान्त

Sunday, May 1, 2022

कृष्णलाल जागीण की रचना

मित्रवर कृष्ण लाल जागीण ने यह पढ़कर साहित्यकारों के whatsaap ग्रुप अथाई में निम्नलिखित पंक्तियां लिखकर भेजी हैं 

श्रद्धेय कुमार शिरोधार्य आदेश।
समरस जीवन का पावन सन्देश।
अनुकूल प्रतिकूल में बोध विशेष।
जीवनसिन्धु मन्थन कुछ ना शेष।
मर्मज्ञ कवि डॉ.कुमार अनेकान्त।
चंचल मन की उलझनें हुई शान्त।
कुशल हैं उत्तम काव्य रचनाकार।
मार्मिकता सूक्ष्म शब्द के संस्कार।
रखते हो पावन हृदय के पूरे उद्गार।
अनेक से एक श्रेष्ठ भुवन सुविचार।
नेक दिल कमल साहित्य सरोवर।
कान्ति शाश्वत आनन पर कविवर।
न्यास नवीन अनुकरणीय आदर्श।
तत्व बोधक हम करें चरणस्पर्श।।

Saturday, April 16, 2022

बुरा मत कह मेरे बारे में

बुरा मत कह मेरे बारे में, इतना तो सोच । 
दोस्त तेरे, महफ़िल मेरी भी सजाते हैं।। 
- कुमार अनेकांत©
17/04/2015

Friday, April 15, 2022

गुनाह

लोग चाहते होंगे तुम्हें खूबियों से मगर ।
हम तो फिदा  ही तेरे गुनाहों पर हैं ।।
- कुमार अनेकान्त©
16/04/2016

Wednesday, March 30, 2022

बंदों की बंदगी

ख़ुश होकर भी कौन सा निहाल करते हो, 
क्यों वक्त जाया करें तुम्हें रिझाने के लिए ।
गुनाह ही है बन्दों की बंदगी हर पल ,
कुछ शख्स जीते ही हैं नाराजगी के लिए ।।

 -कुमार अनेकांत

Wednesday, March 23, 2022

तस्वीर

तस्वीर कुछ  ऐसी भी बनायी  जाये ,
न रहें हम तो हमारी शक्ल भी जानी जाये |
कागजो के चित्र तो ख़त्म हो ही जाते हैं,
जो बसे नजरों में वो न भुलाये  जाएँ ||
-कुमार अनेकांत(2015)

Friday, March 18, 2022

आगे बढ़ो

आगे बढ़ो                                                           
 किताबों को पढ़ो                                          
 उनसे समझो                                             
 लेकिन                                                     
 उसमें मत उलझो                                         
 उनमें अटको भी मत                                    
और भटको भी मत                                       
वो दूसरों के अनुभवों का गठ्ठर है                     
उनसे सीखो लेकिन                                       
उन्हें ढोओ मत                                              
क्यों कि तुम्हारा सच                                      
तुम्हारी ही अनुभूतियों से निकलेगा                   
इसलिए उन्हें पढ़ो                                         
उनसे लड़ो                                                   
और आगे बढ़ो। 
                                                         
- कुमार अनेकान्त १८/०३/२०१६

Wednesday, March 9, 2022

अब की होली किससे मिलो ?

*अब की होली किससे मिलो ?*

उनसे बहुत काम है ,
इसलिए बना के चलो ।

कल को कोई काम पड़े ,
इसलिए निभा के चलो ।

वे कोई काम न बिगाड़ें ,
इसलिए मिल के चलो ।

वे कहीं नाराज़ न हों , 
इसलिए झुक के चलो ।

ये क्या बिगाड़ लेंगे मेरा ?
इनसे क्यों मिल के चलो ?

ये क्या बना देंगे मेरा ?
क्यों बे वजह इनसे
मिलो ?

ये तो सच्चे सीधे हैं ,
मैसेज से ही मान 
जाएंगे ।
होली दीवाली उपहार लेकर ,
क्यों 
इनसे मिलो ? 

उनसे मिलते हैं हर साल ,
उन्हें खुश करने के लिए ।

मगर
अबकी होली 
खुश 
होने के लिए,
एक बार 
हम से मिलो ।।

कुमार अनेकांत ©
१०मार्च २०२०
नई दिल्ली

Tuesday, March 8, 2022

पवित्र भाव

पवित्रभाव हैं सो लेखनी देती कछु लिखाय ,
अर्थ निकालें लोग सब जिसकी जितनी कसाय ।
जिसकी जितनी कसाय कि कछु भावना न समझें ,
है पंचम काल को दोस,मति कछु एसई समझें ।।

कुमार अनेकान्त
9/3/2021

Thursday, February 24, 2022

बेवफा

वो मुझे अक्सर 
सताता बहुत है 
है मुझ पर ज्यादा मेहरबा
हर वक्त 
जताता बहुत है 
गर मजबूरी में लेना ही पड़ जाये 
उससे थोड़ी सी मदद 
महफ़िल में बेवफा 
बताता बहुत है |
            -कुमार अनेकांत
२५/०२/२०१५

Sunday, January 2, 2022

हमारा हमसे ही अन्याय

हमारा हमसे ही अन्याय 

हम 
अक्सर 
अप्रमाणिक व्यक्ति की 
उस बात को 
जल्दी 
प्रमाण मान लेते हैं 
जो वह 
हमें 
हमारे ही मित्र के
खिलाफ भड़काने 
के लिए 
कहता है ।

कुमार अनेकांत 
३/१/२०२०