Saturday, December 26, 2020

प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्

सादर प्रकाशनार्थ

*पागद- णूयणवस्साहिणंदणं*

(प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्)

प्रो.अनेकान्त जैन, नई दिल्ली

पंचत्थिकायलोये ,संदंसणं सिक्खदि समयसारो।
णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो ।।1।।

'पंचास्तिकाय' स्वरूपी इस जगत में 'समयसार' सम्यग्दर्शन सिखाते है,'प्रवचनसार' सम्यग्ज्ञान और 'नियमसार' सम्यग्चारित्र सिखाते हैं ।।1।।

सिरिकुण्डकुण्डप्पं य , अट्ठपाहुडो य सिक्खदि तिरयणा।
रयणसारो य धम्मं ,भावं बारसाणुवेक्खा।।2।।

आचार्य कुन्दकुन्द आत्मा सिखाते हैं,'अष्टपाहुड' रत्नत्रय सिखाते हैं , 'रयणसार' धर्म  और 'बारसाणुवेक्खा' भावना सिखाते हैं ।।2।।

सज्झायमवि सुधम्मो, पढउ कुण्डकुण्डमवि णववस्सम्मि।
करिदूण दसभत्तिं य,अणुभवदु संसारम्मि सग्गसुहं।।3।।

स्वाध्याय भी सम्यक धर्म है ,अतः नव वर्ष में आचार्य कुन्दकुन्द को भी अवश्य पढ़ें और उनके द्वारा रचित 'दशभक्ति' करके संसार में ही स्वर्ग सुख का अनुभव करें ।

पासामि उसवेलाए , संणाणसुज्जजुत्तो णववस्सं ।
होहिइ पाइयवस्सं, आगमणवसुज्जं उदिस्सइ ।।4।।

मैं उषा बेला में सम्यग्ज्ञान रूपी सूर्य से युक्त नववर्ष को देखता हूँ जो प्राकृत भाषा के वर्ष के रूप में होगा और आगम ज्ञान का नया सूर्य उगेगा ।

Wednesday, December 23, 2020

णमो कुण्डकुण्डाणं

*णमो कुण्डकुण्डाणं*

*पंचत्थिकायलोये ,सम्मदंसणो अत्थि समयसारो।*
*णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो* ।।1।।

*कुण्डकुण्डायरियो य , रयणत्तयं अत्थि अट्ठपाहुडो*।
*रयणसारो य धम्मं ,भावो बारसाणुवेक्खा* ।।2।।* 

भावार्थ -

पंचास्तिकाय स्वरूपी इस जगत में समयसार सम्यग्दर्शन है,प्रवचनसार सम्यग्ज्ञान है और निश्चित ही नियमसार सम्यग्चारित्र है ।।1।।

कुन्दकुन्द आचार्य हैं,अष्टपाहुड रत्नत्रय हैं और रयणसार धर्म है तथा बारसाणुवेक्खा भावना है ।।2।।

डॉ अनेकान्त जैन 
24/12/2020
5:30am

Thursday, December 10, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १० ,करुणा

करुणा 

(गाहा छंद )

करुणाभावे कूरो वि
हव‌इ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।

भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।

कुमार अनेकांत 
24/05/2020

समकालीन प्राकृत कविता 21 आत्म-सुख

*जह पहियो खलु पावइ,गिम्हम्मि छायासुहो तउवरम्मि ।*

*तह णाणी अप्पसुहं, सुयम्मि य दुक्खसंसारम्मि ।।*

जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से परेशान पथिक पेड़ के नीचे अवश्य ही छाया सुख का अनुभव करता है उसी प्रकार ज्ञानी इस दुखमय संसार में रहकर भी श्रुत ( शास्त्र ) आराधना में आत्म सुख का अनुभव करता है ।

कुमार अनेकान्त
11/12/2020

Friday, November 13, 2020

महावीर-णिव्वाण-दीवोसवो

महावीर-णिव्वाण-दीवोसवो

 

जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।

  तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।१।।

जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी ।

 

कत्तियकिण्हतेरसे जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।

   वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।२।।

योग निरोध करने के बाद कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी को वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।

 

 चउदसरत्तिसादीए पच्चूसकाले पावाणयरीए 

        ते  गमिय परिणिव्वुओ देविहिं  अच्चीअ मावसे ।।३।।

चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में वे (भगवान् महावीर) परिनिर्वाण को प्राप्त हुए और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई 

 

गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं 

  णाणलक्खीपूया य दीवोसवपव्वं जणवएण ।।४।।

इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया ।

 

     कत्तिसुल्लपडिवदाए देविहिं गोयमस्स कया पूया 

णूयणवरसारंभो वीरणिव्वाणसंवच्छरो  ।।५।।

अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को देवों ने भगवान् गौतम की पूजा की और इसी दिन से वीर निर्वाण संवत और नए वर्ष का प्रारंभ हुआ ।

शाकाहार हाईकू पंचक

 शाकाहार हाईकू पंचक*


कुमार अनेकान्त,
नई दिल्ली
drakjain2016@gmail.com 
11/11/2020

1.
जीवन सार 
हमारा शाकाहार
न मांसाहार

2.
खाकर मांस 
पेट को कब्रिस्तान 
मत बनाओ

3.
रखो करुणा
आहार शाकाहार
जीवों की दया 

4.
मानव धर्म
जीवन शाकाहार 
सात्विक कर्म 

5.
अपनाएगा 
हिन्दु मुसलमान
सच्चा ईमान

Friday, September 25, 2020

हम फर्जी हैं अनुयायी

*हम फ़र्जी हैं अनुयायी*

कुमार अनेकान्त 
26/09/2020

गुरुदेव तो बहुत भाये हमें ,
पर उनकी सीख नहीं भायी ।
उनके पथ को न अपनाते,
हम फ़र्जी हैं अनुयायी ।।1।।

उन्होंने समरसता का किया शंखनाद ,
पर हमको वैषम्य पड़ा दिखलाई ।
उन्होंने बोले सदा मीठे बोल ,
पर हमको कड़वाहट ही भायी ।।2।।


वे शास्त्र बिन कुछ न बोले ,
पर हम बिन शास्त्र ही बोले ।
वे करते थे गैरों का भी सम्मान,
हम अपनों का करते अपमान ।।3।।

उन जैसा जीवन जीने की,
एक डोर भी न पकड़ पाई ।
उनके पथ को न अपनाते,
हम फ़र्जी हैं अनुयायी ।।4।।

वे खुद की मूर्ति के खिलाफ ,
हमने उन्हीं की मूर्ति 
बनवाई ।
वे वीतराग के प्रतिमूर्ति ,
हमने कषायों की कसमें खाई ।।5।।

वे दुनिया को समझाते रहे सदा ,
नहीं समझे खुद के ही
अनुयायी ।
उनके पथ को न अपनाते,
हम फ़र्जी हैं अनुयायी ।।6।।

Wednesday, September 23, 2020

लव षष्टक

लव षष्टक
             -कुमार अनेकांत 
वो दीवानी बावरी 
करके सोला श्रृंगार 
हम में ऐसी क्या कमी दिखी ?
जो हुई लव जेहादी शिकार 

उस कोमल कली को 
गर इधर ही मिले दुलार 
क्यों वो भटके प्यार को 
हो लव जेहादी शिकार 

हमने भी इतने कस दिए 
सामाजिक प्रतिबन्ध 
जाति पाती के नाम पर 
सिमित हुए सम्बन्ध 

क्या बनिया क्या ब्राह्मण 
क्या क्षत्रिय क्या जाट
बेटी अपनों में ही रहे 
अब तय कर लो यह बात 

चलो जपना शुरू करें 
हम भी नेह के मंत्र 
ताकि सफल न हो सके 
लव जेहादी षडयंत्र

जागें खोलें हम भी अपने 
खिड़की और किवार
आने दो अब घर आँगन में 
अपनेपन की बयार

Monday, September 14, 2020

हमारा भाषा परिवार

*हमारा भाषा परिवार*


*हिंदी माआ अत्थि य,*
*पिउ सक्कयं पाइयं सअलदाइ।*

 *णाणी अवभंसो खलु, एसा य भारदभासा परिवारो ।।* 

हिंदी माता है,संस्कृत पिता और प्राकृत सबकी  दादी है और अपभ्रंश हमारी नानी है । यह ही भारत भाषा परिवार है ।

कुमार अनेकान्त 
14/09/2020

Sunday, September 6, 2020

कभी सपना नहीं आया तो कभी देखना नही आया

कहीं नक्शे के मुताबिक जमीं न मिली ,
कहीं मिली तो नक्शा बनाना नहीं आया ।
बैठा ही ना सके अरमानों को 
हैसियत के ढांचे में,
कभी सपना नहीं आया तो कभी देखना नही आया ।।
(कुमार अनेकान्त 6/09/2020) 

Thursday, September 3, 2020

क्षमा वाणी या मैसेज पर्व ?

क्षमा वाणी या मैसेज पर्व ?

कुमार अनेकान्त
4/09/2020
चाहे भूल हो या कोई विवाद, 
सहज मिटते
यदि रहे संवाद ।
साक्षात हो या हो दूरवाणी,
बना रहे पर्व पावन
क्षमावाणी ।।1।।

वाणी का स्थान मेसेज नहीं ले सकता, ज्यों
संदेशों कभी खेत नहीं जुतता।
कह कर करें और 
मांगे क्षमा,
वर्ना मेसेज पर्व
हो जाएगा क्षमा ।।2।।

Monday, August 31, 2020

एक और दसलक्षण हो गया

*एक और दसलक्षण हो गया*

कुमार अनेकान्त

राग विराग हो गया 
धर्म का संरक्षण हो गया 
हम कुछ भीगे कुछ रीते
एक और दसलक्षण हो गया 

हुए व्रत एकासन यथाशक्ति
हुआ स्वाध्याय पूजन यथाभक्ति
भूले बिसरे संस्कारों का पुनः शिक्षण हो गया 
एक और दसलक्षण हो गया 

अब शेष वर्ष समीक्षा है 
सीखा जो उसकी  परीक्षा है
अपनी आत्म यात्रा का 
एक और भ्रमण हो गया 
एक और दसलक्षण हो गया 

1/09/2020
drakjain2016@gmail.com

Friday, August 21, 2020

मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा

*मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा*

@कुमार अनेकान्त
22/08/2020

मत खुलने दो चैत्यालय मंदिर ,
मैं फिर भी दर्शन कर लूंगा ।
जो रूप बसाया है चित्त में,उसकी अनुभूति कर लूंगा ।।

मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा ।

महामारी ने हमें संसार का, वास्तविक स्वरूप दिखाया है ।
क्रिया कांड से परे धर्म का ,
मूल स्वरूप समझाया है ।।

मैं प्रक्षाल स्वयं के दोषों का ,
प्रतिदिन प्रातः कर लूंगा ।
निज चैतन्य की शांति धारा कर,
व्रतों की बोली ले लूंगा ।।

मैं फिर भी अभिषेक कर लूंगा ।


युग बीता मंदिर जाते,किन्तु न आतम बोध हुआ ।
स्वाध्याय सुना पर किया नहीं ,
बस क्रियाओं में ही
उलझा हुआ ।।

अब कोई अवलंबन नहीं , मैं खुद ही मंदिर हो लूंगा ।
गुरु चरणों को भी,
आचरण से अपने छू लूंगा ।।

मैं खुद ही मंदिर हो लूंगा ।

हमने दसलक्षण बहुत किये ,
पर मन दसलक्षण नहीं हुआ ।
व्रत पर्वों पर भी 
मंदिर में,
बस मान आदि ही पुष्ट हुआ ।।

अब क्रोध मान माया लोभ का ,
पूर्ण समर्पण कर दूंगा ।
इनके अभाव से स्वयं ही अब मैं आत्मदर्शन कर लूंगा ।।

मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा ।मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा।।

drakjain2016@gmail.com

Friday, August 14, 2020

स्वतंत्रता दिवस

आज भारत को इंडिया से आजादी चाहिए ।
दे सकते हैं .....?
निज भाषा उन्नति अहैं... 
कर सकते हैं ?
संस्कृत को राष्ट्रीय भाषा 
कह सकते हैं ?
अपने ही घर में 
सर उठा कर 
जी सकते हैं ?
बंदे मातरं को
राष्ट्रीय अभिवादन 
बोल सकते हैं ?

क्या खुद की 
आजादी को 
जी सकते हैं ?

यदि हाँ 
तो 
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक 
शुभकामनाएं 
अन्यथा 
चलो मिलकर 
सिर्फ औपचारिकता 
निभाएं ।

कुमार अनेकान्त 
15/08/2020

Thursday, August 13, 2020

तुम भी यार कॅरोना निकले

*तुम भी यार कॅरोना निकले* 

झूठ ही बिकता रहा बाज़ार में,
दाम बहुत पर ऊपर निकले ।
सच्चाई की भीख मांगने,
लेकर हम कटोरा निकले ।।

अंदर बैर बैठा ही रहा,
मंदिर मस्जिद सैर को निकले ।
क्रीम पाउडर हल्दी उबटन ,
देखें कौन सलोना निकले ।।

एहसानों को सह न पाए ,
अच्छे अच्छे सपोला निकले ।
उफ रिश्तों से इतनी दूरी,
तुम भी यार कॅरोना निकले ।।

कुमार अनेकान्त 
14/08/2020

Saturday, July 11, 2020

पिताजी का जन्मदिन

*पुफ्फो इव सुओमलो कसायो य किंचवि णत्थि हिययम्मि |*

*पेमीफूलचन्दस्स जणगस्स जम्मदिवसो सुहं होउ ||*
 (उग्गाहा )

*ह्रदय में थोड़ी सी भी कषाय नहीं है  ऐसे पुष्प के समान सुकोमल पिता आचार्य  फूलचंद प्रेमी जी का जन्मदिवस शुभ हो* ...........

- अनेकांत रुचि सुनय अनुप्रेक्षा

Tuesday, July 7, 2020

वीर शासन जयंती प्राकृत आगम।दिवस

वीरसासणे पढमे सावणकिण्हेके खिरीअ देसणा ।
पाइयागमो दिवसो करिस्सदि भव्वस्स खलु कल्लाणं ।।

श्रावण कृष्णा एकम् को वीर शासन जयंती के दिन भगवान् महावीर की देशना खिरी थी , यह शुभ दिन प्राकृत आगम दिवस है जो निश्चित ही भव्य जीवों का कल्याण करेगा |

कुमार अनेकांत 
6/07/2020
वीर शासन जयंती 

Monday, June 29, 2020

घूंघट

हर तरफ जरूरी है घूंघट 

लज्जा में जरूरी,
मर्यादा में जरूरी,
मजबूरी नहीं
शान है घूंघट ।
संस्कृति की पहचान है घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।।


भोजन को जरूरी, पानी को जरूरी ।
तन को जरूरी,
मन को जरूरी ।।

सुरक्षा में ढांकने का नाम है घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।

धन को जरूरी,पुस्तक को जरूरी ।
इज्जत को जरूरी ,
वायरस की मजबूरी ।।

मुख का नया मास्क हैं घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।

खुद को जरूरी,आपको जरूरी।
बहू को जरूरी,
सास को जरूरी ।।

शाश्वत सौंदर्य बोध है घूंघट ,

हर तरफ जरूरी है घूंघट ।।

कुमार अनेकांत 
२९/०६/२०२०

Tuesday, June 23, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १९-२०

*णमो जिणाणं*

*णिरक्ख‌ओ गंथिणो,सेट्ठो गंथिओ णाणदाणी च* ।

*दाणिओ वरतावसी*,
*तावसिओ वराप्पदरसी ।।*

निरक्षर लोगों से ग्रंथ पढने वाले श्रेष्ठ ।उनसे भी अधिक ग्रंथ समझाने वाले श्रेष्ठ । ग्रंथ समझाने वालों से भी अधिक  श्रेष्ठ तप करने वाले हैं  तथा उनसे भी अधिक आत्मा का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ होते है।

*दुओ पंखओ जहा च*
*पक्खिणो उड्डंति णीलो ग‌अणे* ।
*तहा णाणचारित्तो जीवो लह‌इ च  मोक्खसुहं*।

    "जिस तरह दो पंखो के आधार से पक्षी आकाश में ऊँचा उडता है उसी तरह ज्ञान तथा  चारित्र से जीव मोक्ष को प्रााप्त करता है ।

Thursday, June 18, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १८ पीड़ा

समकालीन प्राकृत कविता

पीड़ा

पीडियो सहइ पीडा तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ |
कसायेण सयं दहइ परकत्ताभावेण जीवो ||

भावार्थ

पीड़ित व्यक्ति तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से  स्वयं जलता रहता है |

कुमार अनेकांत
१८/०६/२०२०

Monday, June 15, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १७ विपरीत युग और वक्ता


समकालीन प्राकृत  कविता

विपरीत युग और वक्ता

विवरीयो जुगो अत्थि वत्ता च किं करिस्संति भगवओ 
धम्मगिहत्थोवदिसइ बंभचारीबालपालणं ।।

यह युग भी विपरीत है और वक्ता भी ,तो भगवान् भी क्या करेंगें ?
गृहस्थ मोक्ष का उपदेश दे रहे हैं और ब्रह्मचारी सिखा रहे हैं कि बच्चों का लालन पालन कैसे किया जाय ?

कुमार अनेकांत 
१६/०६/२०२०

Saturday, June 6, 2020

णिय - बोह ( निज बोध )

णिय - बोह ( निज बोध )

अप्पणो सुद्धमप्पा ण पवयणेण ण बहुसुयेण लद्धं ।
झाणेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।१।।

भावार्थ 
अपना शुद्धात्मा न प्रवचन करने से , न बहुत प्रवचन सुनने से और न ही वह ध्यान से प्राप्त होता है । निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।

सज्झायेण ण लद्धं ण खलु वयमहव्वयोववासेहिं ।
पूयेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।२।।

भावार्थ 
वह स्वाध्याय के द्वारा,व्रत,महाव्रत उपवास और पूजा पाठ से भी नहीं प्राप्त होता है ।निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।


घोरतवेण ण लद्धं ण पंययल्लाणयमहोसवेहिं ।
मंतेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।३।।

घोर तप और पञ्च कल्याणक आदि महोत्सवों,मंत्र तंत्र आदि से भी प्राप्त नहीं होता । निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।


ववहारेण ण लद्धं ण कत्ताभाव- णिमित्तदिट्ठेण च ।
कालेण उवायाणेण
णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।४।।

भावार्थ 
वह शुद्धात्मा व्यवहार दृष्टि से, कर्त्ता भाव से और न ही निमित्त आधीन दृष्टि से प्राप्त होता है । वह समय आने पर निज योग्यता ( उपादान)  से निजात्मा में स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।

कुमार अनेकांत 
७/०६/२०२०
रात्रि २:४२ 
स्थान : नई दिल्ली 

Saturday, May 30, 2020

कैसे कर दूँ माफ़

कैसे कर दूँ माफ़  ?

खुद कुछ न करें कोई करे तो बनते बाधाएं ।
खुदा भी न जाने सबकी कैसी मन की पीड़ायें ।।

खुद के सिक्के में हो खोट तो इल्ज़ाम दे किस पर ।
गैर पड़ जाते हैं भारी सदियों की मुहब्बत पर ।।

जो था विश्वस्त उसे कोई कैसे बदल देगा ?
चिंगारी न हो तो गैर कैसे हवा देगा ?

न गिला उससे जो तुम्हें भड़काए मेरे खिलाफ ।
भड़के तो तुम हो खता ये कैसे कर दूँ माफ़ ?।।

©कुमार अनेकांत

Friday, May 29, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १६ अनुप्रेक्षा जन्मदिवस

समकालीन प्राकृत कविता १६ अनुप्रेक्षा जन्मदिवस 

मुण्णीफूलचंदणं य
पोइ पुत्ती रुइ-अणेयन्तणं ।
सुहं पियजम्मदिवसो  
सुणयस्स बहणाणुवेक्खा ।।

फूलचंद जी और मुन्नी जी की पोती और
अनेकांत -  रुचि की पुत्री , सुनय की बहन प्रिय अनुप्रेक्षा का जन्म दिवस शुभ हो ।

प्रिय अनुप्रेक्षा को जन्म दिवस की 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ।

अनेकांत 
३०/०५/२०२०

Wednesday, May 27, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १५ श्रुत पंचमी

समकालीन प्राकृत कविता 
श्रुत पंचमी महोत्सव 

णमो धरसेणाणं य
भूयबलीपुप्फदंताणं सयय ।
सुयपंयमीदियसे य
लिहीअ सुयछक्खंडागमो ।।

भावार्थ :
श्रुत पंचमी के दिन भगवान महावीर की मूल वाणी द्वादशांग के बारहवें अंग दृष्टिवाद के  अंश रूप श्रुत अर्थात्
षटखंडागम को लिखने वाले आचार्य पुष्पदंत और भूतबली तथा उन्हें श्रुत का ज्ञान देने वाले उनके गुरु आचार्य धरसेन को मेरा सतत नमस्कार है ।

कुमार अनेकांत 
२७/०५/२०२०
श्रुत पंचमी 

Monday, May 25, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १३-१४ पाप

ण मण्णदि सयं अप्पा,
जेट्ठपापं खलु सव्वपापेसु ।
तेसु य सादो उत्तं
पापिस्स लक्ख‌णं जिणेहिं ।।

भावार्थ :
निश्चित ही स्वयं को आत्मा न मानना सभी पापों में सबसे बड़ा पाप है । और जिनेन्द्र भगवान् ने पापों में स्वाद लेना ही पापी का लक्षण बताया है ।

दुक्खी होदि य हिंसा ,
झूठकत्ता मण्णदि परदव्वस्स  ।
परं मम चोइमुच्छा 
परसुहबुद्धि कुसीलो होदि ।।

भावार्थ 
दुखी होना ही हिंसा है , स्वयं को पर का कर्ता मानना ही झूठ है , पर को अपना मानना ही चोरी है ,पर में मूर्च्छा ( आसक्ति)ही परिग्रह और पर में सुख बुद्धि ही कुशील होता है ।


कुमार अनेकांत

Sunday, May 24, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १२ ,संकप्पदिवसो

*संकप्पदिवसो*

*पंडिय हुकमचंदस्स जम्मदिवसेव सुसंकप्पदिवसो।*

*सहस्सा सिस्सा सयय जिणदंसणं पसारिस्सन्ति।।*

भावार्थ :

पंडित हुकुमचंद भारिल्ल जी का जन्मदिन ही वह सु संकल्प दिवस है जिसमें उनके हजारों शिष्य जिनदर्शन का प्रचार प्रसार करेंगे - (ऐसा संकल्प करते हैं ) ।

कुमार अनेकांत 
२५/०५/२०२०

Saturday, May 23, 2020

समकालीन कविता १२ , योगी ऋषभदेव

विश्व योग दिवस

समकालीन कविता १२ , योगी ऋषभदेव


उसहो जोगो  उत्तं  ,
पढमो कीरइ आसणं तवझाणं |
सुद्धोवओगधम्मं,
आदा मे संवरो जोगो ||

प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सर्वप्रथम योग विद्या का उपदेश दिया | उन्होंने सर्वप्रथम आसन ,तप, ध्यान और शुद्धोपयोग धर्म को प्राप्त किया और उपदेश दिया कि आत्मा ही संवर और योग है |


@कुमार अनेकांत
२५/०५/२०२० 

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

(गाहा छंद )

करुणाभावे कूरो वि
हव‌इ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।

भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।

कुमार अनेकांत 
24/05/2020

Friday, May 22, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १० पंचमकाल में श्रावकधर्म

पंचमकाल में श्रावकधर्म

पूया सज्झाय सयय,
दाणं मुख्खं खलु सावयधम्मे ।
पंचमयाले रयणं ,
अणुव्व‌ओ हव‌इ भूसणं ।।

भावार्थ -

पंचमकाल में श्रावक धर्म में सतत सच्चे देव शास्त्र गुरु की पूजा ही सम्यग्दर्शन,सतत स्वाध्याय ही सम्यग्ज्ञान और सत्पात्र को दान ही सम्यग्चारित्र है । यह ही सामान्य श्रावक का मुख्य रत्नत्रय है । यदि वह अणुव्रत धारण कर लेता है तो वह श्रावक के लिए आभूषण के समान होता है।

कुमार अनेकांत 
२३/०४/२०२०

Wednesday, May 20, 2020

समकालीन प्राकृत कविता - ९ ऑन लाइन मोक्ष

समकालीन प्राकृत कविता - ९

ऑन लाइन मोक्ष

सिघ्घं हवन्ति णाणं ,
पूयापाठं विहाणं झाणं य ।
अप्पाणुभवो होज्ज
मोक्खं वि आणलाइणेण ।।

भावार्थ :

आज आनलाइन माध्यम से
ज्ञान,पूजापाठ,विधान और ध्यान भी बहुत शीघ्रता से हो रहे हैं अब वह दिन दूर नहीं जब आत्मानुभव और 
मोक्ष भी ऑनलाइन ही होंगे ।

कुमार अनेकांत 
२०/०५/२०२०














Monday, May 18, 2020

समकालीन प्राकृत कविता – ८ ‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’


समकालीन प्राकृत कविता – ८

        (उग्गाहा छंद )

‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’

अप्पसहावो गच्छइ ,ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |
जो गच्छइ सो य ण मम,जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||

भावार्थ –

आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |

@कुमार अनेकांत 
17/05/2020

Sunday, May 17, 2020

णेणागिरि-वेहवं

णेणागिरि-वेहवं

(नैनागिरि वैभवं )

(उग्गाहा छंद )

णमो पासणाहाणं
रेसिंदगिरिम्मि तव समवसरणं ||
सयय णमो सिद्धाणं
इंदवरगुणसायरमुणिन्दाणं ||१||

भावार्थ -
जिन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का समवशरण रेसिंदगिरि तीर्थ पर आया था उन्हें  तथा जिन इन्द्रदत्त, वरदत्त, गुणदत्त ,सायरदत्त और मुनीन्द्रदत्त मुनियों ने यहाँ से निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध अवस्था प्राप्त की उन्हें तथा सिद्धों को हमारा सतत नमस्कार है |

सिद्धसिला परिपुण्णं,
णइ सेमरापठार-सेलचित्तं |
सरोवरमहावीरो ,     
सोहइ मज्झे णेणागिरितित्थं ||२||

भावार्थ –
सेमरा पठार नदी के पास शैल चित्रों से परिपूर्ण सिद्धसिला से और मध्य में महावीर सरोवर से नैनागिरि तीर्थ शोभायमान हो रहा है |
भव्वो विसालपडिमा ,
दंसणेण णमो मुणिसुव्वयाणं |
दौलरामवण्णी किय,
जिणभत्ता खलु करन्ति पूयाणं ||३||

भावार्थ –

भव्य विशाल प्रतिमा के दर्शन के माध्यम से तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ को मेरा नमस्कार है जहाँ बैठकर जिनेन्द्र भगवान् के भक्त श्रावक बाबा दौलतराम वर्णी जी द्वारा रचित पूजाओं को करते हैं |

तवो य णेणातित्थे,
सयय णमो विज्जासायाराणं |
णागो वि सुणइ धम्मं,
जं देसणा ‘अणेयंत’-पवयणं ||४||

भावार्थ –
नैनागिरी तीर्थ पर तपस्या करने वाले उन आचार्य विद्यासागर महाराज को भी मेरा सतत नमस्कार है जिनके    प्रवचन देशना में प्रतिपादित अनेकांतरूप धर्म को सर्प जैसे तिर्यंच भी भक्ति भाव पूर्वक सुनते हैं |

गणेसवण्णी तवसो,
सयय सेवइ सुरेसपसासणियं ।
भायउयफूलचंदा,
विउसां जणणी णेणागिरितित्थं।।५।।

भावार्थ - 
यह नैनागिरि तीर्थ, गणेशप्रसाद वर्णी जी की तपस्या का तीर्थ है , सुरेश जैन(IAS) प्रशासनिक की सतत सेवा का तीर्थ है और निश्चित ही प्रो.भागचंद जैन , प्रो उदयचंद जैन जैसे प्राकृत भाषा के तथा प्रो.फूलचंद जैन प्रेमी जैसे जैनदर्शन के विद्वानों को पैदा करने वाला तीर्थ है ।

प्रो अनेकांत कुमार जैन
१८/०५/२०२० 

Saturday, May 16, 2020

समकालीन प्राकृत कविता – ६, विश्व परिवार दिवस


समकालीन प्राकृत कविता – ६

विश्व परिवार दिवस

        (उग्गाहा छंद )

चागाणन्दो य जत्थ ,तत्थ विवाओ ण हवइ परिवारे |
जो सहइ सो खलु रहइ ,लोही य असहणसीला ण रहंति ||

भावार्थ

(त्याग में आनंद मानने वाला) त्यागानंद नामक व्यक्ति जिस घर में रहता है, उस परिवार में कभी विवाद नहीं होता | (परिवार में एक साथ रहने का नियम है कि) जो सहता है वह ही निश्रचित रहता है |लोभी और असहनशील लोग परिवार में एक साथ नहीं रहते |

@कुमार अनेकांत 
15/05/2020


Friday, May 15, 2020

समकालीन प्राकृत कविता ७ , बेवफाई

समकालीन प्राकृत कविता - ७

(गाथा छंद)

बेवफाई 

करोणाविसाणु-भयं,
भूकंपो य पइदिणं ण बीहेइ ।
बीहेइ मम लोये य ,
मत्ततव विवरीयसहावं ।।

भावार्थ -
करोना वायरस का भय और प्रतिदिन का भूकंप भी मुझे डराता नहीं है । इस लोक में यदि मुझे कोई डराता है तो मात्र तेरी बेवफाई ( तुम्हारा विपरीत स्वभाव) ।

© कुमार अनेकांत
drakjain2016@gmail.com
१६/०५/२०२०

समकालीन प्राकृत कविता - ५ जिओ बाहर , रहो भीतर

समकालीन प्राकृत कविता - ५

  जिओ बाहर , रहो भीतर  
        (उग्गाहा छंद )
जीववहो अप्पवहो,
हिंसा ण हवइ सुद्धोवओगम्मि |
धारयदु य अहिंसा ,
जीउ संसारम्मि , ठिदो अप्पम्मि ||
भावार्थ
जीववध आत्मवध ही है ,(इसलिए सभी जीवों की हिंसा से बचो )शुद्धोपयोग में हिंसा नहीं होती है ,इसलिए अहिंसा (शुद्धोपयोग )को धारण करो और जियो भले ही संसार में लेकिन रहो आपनी आत्मा में अर्थात् जियो बाहर लेकिन रहो भीतर |

@कुमार अनेकांत drakjain2016@gmail.com


15/05/2020

Thursday, May 14, 2020

समकालीन प्राकृत कविता- ४ , लॉक डाउन में ऑनलाइन तत्त्वज्ञान

*समकालीन प्राकृत कविता* - ४

 

*लॉक डाउन में ऑनलाइन तत्त्वज्ञान*

 

*जिणस्स य तच्चणाणं,*
*पसारयन्ति ऑणलइण सिविरेेण।*

*पण्डिया जिणधम्मस्स,*
*टोडरमलस्स णव वंसजा*।।

 

भावार्थ –

पण्डित टोडरमल जी के नव वंशज जिनधर्म-दर्शन के पण्डित ( युवा विद्वान) ऑनलाइन शिविर के माध्यम से जिनेन्द्रदेव का तत्त्वज्ञान प्रसारित कर रहे हैं |

@कुमार अनेकांत १४/०५/२०२० drakjain2016@gmail.com

Tuesday, May 12, 2020

समकालीन प्राकृत कविता -३ मजदूर और मजबूर

प्राकृत कविता -३ 

मजदूर और मजबूर 

मयऊरा जयदे खलु , वयं विवसो 
पहवाउजाणेहिं |
गच्छंति गेहगामा, सहस्समीला य पादेहिं || 

भावार्थ -

इस देश में मजदूर ही वास्तव में जयवंत हैं ,क्यों कि हम लोग पथ(रेल और बस) तथा वायुयान के द्वारा यात्रा के लिए (विवश) मजबूर हैं और वे हजारों मील अपने अपने गाँव और घर पैदल ही जा रहे हैं |

@कुमार अनेकांत १२/०५/२०२० 
drakjain2016@gmail.com

Monday, May 11, 2020

समाहिमरणभावणा




आयरिय-अणेयंतकुमारजइणेण विरइदं 


   
समाहिमरणभावणा

   (समाधि मरण भावना )

          (उग्गाहा छंद)


उवसग्गे दुरभिक्खे,असज्झरोगे च विमोयणकसाय ।
अब्भंतरबाहिरा च सल्लेहणपुव्वगं मरणसमाहि ।।1 ।।

असाध्य उपसर्ग  ,दुर्भिक्ष या रोग आदि आने पर अभ्यांतर और बाह्य कषाय के विमोचन के लिए सल्लेखना पूर्वक मरण समाधि कहलाती है ।। ।।

वित्तेण   वि खलु  मरिज्जदि,अवित्तेण  वि  खलु  अवस्स  मरिज्जदि  
जदि दोहिं   वि  मरिस्सदि ,वरं हि सुदाणेण खलु  मरिदव्वं ।।2।। 

धन के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, धन के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) सम्यक् दानपूर्वक ही मरण करना चाहिए।

परिग्गहेण  मरिज्जदि,अपरिग्गहेण वि अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि अपरिग्गहेण मरिदव्वं ।।3।। 

परिग्रह के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, परिग्रह के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अपरिग्रह धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

कसायेण वि मरिज्जदि,णिक्कसायेण वि अवस्स मरिज्जदि    
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि वीयराये मरिदव्वं ।।4।।
 
     कषाय के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, कषाय के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) वीतराग भाव पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

कोहेण वि मरिज्जदि,खंतिखम्मेण वि अवस्स मरिज्जदि 
         जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि खंतिखम्मेण मरिदव्वं ।।5।।

     क्रोध के होने पर भी निश्चित मरता है, क्रोध के न होने पर शांति और क्षमा में भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) शांति और उत्तम क्षमा पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

माणेण वि   मरिज्जदि ,मज्जवे वि खलु अवस्स मरिज्जदि
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं मज्जवधम्मेण मरिदव्वं ।।6।।

     मान के होने पर भी निश्चित मरता है, मार्दव होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम मार्दव धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
मायाए वि मरिज्जदि,अज्जवेण वि खलु अवस्स मरिज्जदि
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं    अज्जवधम्मे      मरिदव्वं   ।।7।।

     माया के होने पर भी निश्चित मरता है, आर्जव  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम आर्जव  धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

लोहेण वि     मरिज्जदि,सोयेण वि य खलु अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि सोयधम्मेण मरिदव्वं ।।8।।

     लोभ के होने पर भी निश्चित मरता है,  शुचिता(शौच धर्म ) के  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम शौच धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

संजमेण वि मरिज्जदि असंजमेण वि  अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि ,वरं   संजमधम्मे     मरिदव्वं ।।9।।

संयम के होने पर भी निश्चित मरता है,  असंयम के  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम संयमधर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

                       एयंतेण  मरिज्जदि ,अणेयंतेण वि अवस्स मरिज्जदि 
    जदि दोहिं वि  मरिस्सदि वरं हि अणेयंतेण मरिदव्वं ।।10।।

एकांत मानने पर भी निश्चित मरता है,  अनेकांत मानने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अनेकांत धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

                                                                     प्रो.अनेकांत कुमार जैन