Wednesday, May 20, 2020

समकालीन प्राकृत कविता - ९ ऑन लाइन मोक्ष

समकालीन प्राकृत कविता - ९

ऑन लाइन मोक्ष

सिघ्घं हवन्ति णाणं ,
पूयापाठं विहाणं झाणं य ।
अप्पाणुभवो होज्ज
मोक्खं वि आणलाइणेण ।।

भावार्थ :

आज आनलाइन माध्यम से
ज्ञान,पूजापाठ,विधान और ध्यान भी बहुत शीघ्रता से हो रहे हैं अब वह दिन दूर नहीं जब आत्मानुभव और 
मोक्ष भी ऑनलाइन ही होंगे ।

कुमार अनेकांत 
२०/०५/२०२०














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