समकालीन प्राकृत कविता - ९
ऑन लाइन मोक्ष
सिघ्घं हवन्ति णाणं ,
पूयापाठं विहाणं झाणं य ।
अप्पाणुभवो होज्ज
मोक्खं वि आणलाइणेण ।।
भावार्थ :
आज आनलाइन माध्यम से
ज्ञान,पूजापाठ,विधान और ध्यान भी बहुत शीघ्रता से हो रहे हैं अब वह दिन दूर नहीं जब आत्मानुभव और
मोक्ष भी ऑनलाइन ही होंगे ।
कुमार अनेकांत
२०/०५/२०२०
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