समकालीन प्राकृत कविता
श्रुत पंचमी महोत्सव
भूयबलीपुप्फदंताणं सयय ।
सुयपंयमीदियसे य
लिहीअ सुयछक्खंडागमो ।।
भावार्थ :
श्रुत पंचमी के दिन भगवान महावीर की मूल वाणी द्वादशांग के बारहवें अंग दृष्टिवाद के अंश रूप श्रुत अर्थात्
षटखंडागम को लिखने वाले आचार्य पुष्पदंत और भूतबली तथा उन्हें श्रुत का ज्ञान देने वाले उनके गुरु आचार्य धरसेन को मेरा सतत नमस्कार है ।
कुमार अनेकांत
२७/०५/२०२०
श्रुत पंचमी
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