समकालीन प्राकृत कविता - ५
जिओ बाहर , रहो
भीतर
(उग्गाहा छंद )
जीववहो अप्पवहो,
हिंसा ण हवइ सुद्धोवओगम्मि |
धारयदु य अहिंसा ,
जीउ संसारम्मि , ठिदो अप्पम्मि ||
भावार्थ
जीववध आत्मवध ही है ,(इसलिए सभी जीवों की हिंसा से बचो )शुद्धोपयोग
में हिंसा नहीं होती है ,इसलिए अहिंसा (शुद्धोपयोग )को धारण करो और जियो भले ही
संसार में लेकिन रहो आपनी आत्मा में अर्थात् जियो बाहर लेकिन रहो भीतर |
@कुमार अनेकांत drakjain2016@gmail.com
15/05/2020
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