Saturday, November 6, 2021

कैसा मुमुक्षु ?कैसा अनेकांत ?

कैसा मुमुक्षु ?कैसा अनेकांत ?

जब तक मुझे है आग्रह 
कषाय जनित भाव का 
गुरु का पंथ का 
और ग्रन्थ का 
तब तक दूर है वो तत्व
जिसका दर्शन है सम्यक्त्व 
एकांत में सिमटा मेरा भाव
बिन अनेकांत 
मिटे कैसे मिथ्या प्रभाव 
                  -कुमार अनेकांत

Monday, October 25, 2021

भूकंप के झटके

पुण्य भाव से हट के
पाप कार्य से सट के
कर्ता भाव में अटके 
संसार में हम भटके 
पर भावों को ही रट के
खुद से ही रहते कट के 
प्रकृति को हम क्यों खटके 
आ गये भूकंप के झटके 
                           -कुमार अनेकान्त

Monday, October 11, 2021

जन्नत न् मिली

न शहीदों में नाम आया न दीवानों में 
हम लुट भी गए शहादत न मिली
जीते रहे उनके नाम पर यूँ ही 
 मर भी गए और जन्नत न मिली 

कुमार अनेकान्त 

सब कुछ था पर वैराग्य नहीं था

तन था मन था संयममय जीवन था
ज्ञान  प्रवचन और भक्ति भजन था 
करुणा थी लबालब आतम में
जगत सुधरे इसका भरपूर जतन था 

स्वाध्याय तीर्थ उपदेश प्रचुर था 
धर्म फैलाने में भरपूर मगन था 
पर इस भव को सार्थक करने 
सब कुछ था पर वैराग्य नहीं था  

कुमार अनेकान्त
11/10/2021

Wednesday, September 29, 2021

तुम पटाते हो हम पट जाते हैं

तुम ठगते हो 
हम ठग जाते हैं
तुम रुलाते हो 
हम रो लेते हैं
तुम हँसाते हो 
हम हँस लेते हैं 
लाख गुस्ताखियां 
भी माफ़ करके तेरी 
तुम पटाते हो 
हम पट जाते हैं ।

©कुमार अनेकान्त
29/09/2021

Tuesday, September 28, 2021

क्षमा याचना की सीमा

क्षमा याचना की सीमा

*तिव्वकसायजुत्तं य मूढमणुस्सं* *खमा हु ण यायव्वा।*
*वरं अप्पम्मि ठिदूण*
*भावेण सुद्धो भवियव्वो*।।


तीव्रकषाययुक्त  और मूर्ख मनुष्य से  कहकर क्षमा याचना नहीं करनी चाहिए ,इससे तो अच्छा है आत्मस्थ होकर (उन्हें क्षमा कर देना चाहिए और अंदर ही अंदर) भावों विशुद्धि प्राप्त करनी चाहिए ।

डॉ अनेकान्त कुमार जैन 
27/09/2021

Tuesday, August 24, 2021

णमो कुण्डकुण्डस्स

*णमो कुण्डकुण्डस्स*

*जस्स वाणी सुणिदूण* ,
*सेआम्बरो वि हवदि दिअम्बरो।*
*णमो य तिहुवणपुज्जं* 
*दिअम्बरायरियो कुण्डकुण्डस्स।।*

जिनकी दिव्य वाणी को सुनकर  श्वेताम्बर भी (अपना मताग्रह त्यागकर) दिगंबर  हो रहे हैं ,(उन ) तीनों लोकों में पूज्य महान दिगंबर जैन आचार्य कुन्दकुन्द को मेरा नमस्कार है ।

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली 
24/08/2021

Sunday, August 22, 2021

तालिबान होते जा रहे हैं

*अपनों को ही मिटाने में, कुर्बान होते जा रहे हैं ।*
*हम भी कहीं न कहीं, तालिबान होते जा रहे हैं ।।*

*कुमार अनेकान्त©*
23/08/2021

Sunday, August 1, 2021

दोस्ती

दोस्ती

ता उम्र हमने दोस्ती की इबादत की है ,
कमबख्त लोग एक दिन मुकरर कर बैठे |

हम नहीं जानते क्या है मतलब इसका ,
जो जरा मुस्करा के मिला,इकरार कर बैठे || 

उनके वजूद से ही खुद का वजूद माना,
बेरुखी उनकी थी और हम गुनहगार बन बैठे |

अब इस ऐतबार को आप चाहे जो कहें ,
उसने दिन को कहा रात और हम सो बैठे ||


- कुमार अनेकांत
2/08/2018

किताबें कुछ सिखाती हैं मित्र सबकुछ सिखाता है

*किताबें कुछ सिखाती हैं मित्र सबकुछ सिखाता है*

©कुमार अनेकान्त

दुनिया उसूल सिखाती है 
मित्र तोड़ना सिखाता है 
दुनिया जीवन सिखाती है 
मित्र जीना सिखाता है 
किताबें प्रेम पढ़ाती हैं 
मित्र प्रयोग सिखाता है 
किताबें अंग पढ़ाती हैं 
मित्र उपयोग सिखाता है 
किताबें शब्द सिखाती हैं 
मित्र अपशब्द सिखाता है 
दुनिया बहुत डराती है 
मित्र लड़ना सिखाता है 
दुनिया पैसा सिखाती है 
मित्र खर्चा सिखाता है 
जब सब लोग दें धोखा
मित्र विश्वास सिखाता है 
बिगाड़ता है जरूर मित्र अपना 
पर वही जीना सिखाता है 
किताबें कुछ सिखाती हैं
मित्र सबकुछ सिखाता है


मित्रता दिवस की सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं

Monday, July 26, 2021

यथार्थ

यथार्थ 


यहां जिसकी जितनी है जरूरत ,

बस उसकी उतनी है अहमियत ।

शौक हो तो करते रहिए उपकार ,

वर्ना खोजते ही रहेंगे इंसानियत ।।


जिंदगी भर पाले रहते हैं वहम,

कि हम ही हैं सबके लिए अहम ।

लोग नाम भूल जाएंगे आपका ,

गायब होकर देखिए एकदम ।।


आप रहें न रहें फर्क कुछ भी नहीं ,

दिन तेरह भी नहीं टिकती यादें ।

आप कुछ भी कहते सिखाते रहें ,

यहीं रह जाती हैं यहां की बातें  ।।

वक्त रुकता है न जमाना बदलता है ,

संसार अपनी ही चाल से चलता है ।

चाहे कितने भी प्यार से पालो पंक्षी ,

सूखा पेड़ तो ठिकाना बदलता है ।।

कुमार अनेकान्त 

26/07/2021


Saturday, July 17, 2021

अणुवमाहिणंदणं

*अणुवमाहिणंदणं* 

जइण-गणिय-सुदविउसो ,
अणुवमो करणाणुओय-सुविण्णो ।
जिणवाणी-सुपुत्तस्स ,
इह मणुभवो सुसहलो होदु ।।

अनुपमाभिनंदन

जैन गणित के श्रुतधर विद्वान ,करणानुयोग के अनुपम सुविज्ञ ,जिनवाणी के सुपुत्र का यह मनुष्य भव सुसफल होवे । 

डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली

Friday, July 9, 2021

आईना

आईना हो तो अपना भी अक्स नजर आए , 
दूरबीन ही रखते हैं बुराई वाले ।

AKJ
9/7/2021

Tuesday, July 6, 2021

अंदाज़

*वो बदल सा जाता है*

© कुमार अनेकान्त
    (6/07/2021)

खुद को ही देखते देखते,
जवां मौसम ढल सा जाता है ।
अंदाज़ अपने आईने में देखकर ,
गुरूर हुस्न का बढ़ सा जाता है ।।

कीमत नहीं समझते ,
रहता है जो नज़दीक ।
जुदाई में अक्सर उसका ,
एहसान याद आता है ।।

जिसको पालो घर पर,
कितना भी अपना समझकर ।
गैरों की छत पाते ही,
वो बदल सा जाता है ।।

Friday, July 2, 2021

हस्ताक्षर

हस्ताक्षर

पूरा अपना नाम लिख दिया था ।
जब पहली बार हस्ताक्षर किया था ।।

सुंदर स्पष्ट अक्षरों में लिखे पूरे नाम को ।
पढ़ हंसी उड़ाई गई मानो पढ़े नाम को ।।

फिर समझाया गया स्पष्ट सुंदर अक्षर ।
चाहे कितने हो प्रिय पर नहीं हैं वे हस्ताक्षर ।।

कोई भी नकल कर लेगा ।
लिख कर तुम्हें ठग लेगा ।।

फिर लिखकर कई कई बार 
 कागज किये बेकार ।
आफत थी ऐसी आयी
खुद के नाम में गूद मचाई ।।

जब कुरूप किये अपने अक्षर ,
तब माने गए वे हस्ताक्षर ।
फिर पढ़ा लिखा सब कहने लगे ,
हम सुलेख का हश्र सहने लगे ।।

ज्यों नाम बढ़ा पद और रुतबा ,
करने पड़े सैकड़ों हस्ताक्षर ।
तब सिकुड़ते गए स्वयं ही ,
मेरी कलम से मेरे हस्ताक्षर ।।

मैं जितना बड़ा होता गया ,
उतने हस्ताक्षर छोटे होते गए ।
मेरे नाम के सारे अक्षर ,
मेरे ही मान में मेरे खोते रहे ।।

कुमार अनेकान्त
3/07/2021

Monday, June 21, 2021

पिता नहीं भगवान हैं वे

आज पिता दिवस पर 
पिता नहीं भगवान् हैं वे 

- कुमार अनेकांत© 

पिता नहीं भगवान् हैं वे 
भले ही एक इंसान हैं वे 
ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं 
मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे 

जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं
मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे
आगम पढ़ाया आप्त समझाया
श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे 

मम मन समझें मनोविज्ञानी
मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे 
मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र
दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे 

मेरे तीनों काल को जाने 
मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे 
कोई चाहे कुछ भी कह ले
मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे 

पाठकों से निवेदन - 

   छंद नहीं अनुभूति देखें 
   शब्द नहीं भाव को परखें 
   जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे 
   अकवि की भी कविता देखें ।

Saturday, June 19, 2021

श्रुत पंचमी हो गई

*श्रुत पंचमी हो गई* !

खूब पूजा हुई ,
सेमिनार हुए,
व्याख्यान प्रवचन हुए ,
पर 
उस दिन से 
कोई नई पाठशाला चालू हुई ?
कोई नई शास्त्र सभा प्रारम्भ हुई ? 
यदि जहां हाँ है तो श्रुत पंचमी सार्थक हुई 
यदि नहीं तो 
शुरू करो 
और 
श्रुत पंचमी सार्थक करो ।

🙏कुमार अनेकान्त

शुभ परिणय उत्सव ( प्राकृत कविता )

सुह-परिणओस्सवो
(शुभ परिणय उत्सव )

सरीरजुदो आदा य , मणाभिण्णो जइ परिणयजीवणे ।
संसारधण्णो वि सिय ,जइ उहयो धम्मे वि रमन्ति।।

भावार्थ 

(यद्यपि) परिणय जीवन में (दोनों का )शरीर भी अलग है और आत्मा भी किन्तु यदि मन अभिन्न है और दोनों धर्म में भी रमण करते हैं तो यह (असार ) भी स्यात् (कथंचित्)  सारभूत  है ।

अनंत शुभकामनाओं के साथ 

प्रो डॉ अनेकान्त जैन एवं डॉ रुचि जैन

Friday, June 11, 2021

शास्त्र संरक्षण श्रुत पंचमी प्राकृत

*सुयपंयमी महोस्सवो*

*जिणवयणरक्खणत्थं वायणपिच्छणामणायभावणा* ।
*पवयणं य कादव्वं मुख्खेण सह मा सत्तथ्थं* ।।

भावार्थ :

जिनेन्द्र भगवान के वचनों (शास्त्रों) की रक्षा के लिए (प्रतिदिन) उसे पढ़ना चाहिए, उस पर जिज्ञासा करनी चाहिए,उसका पाठ करके उसे कंठस्थ करना चाहिए , उसके विषय की भावना ( अनुप्रेक्षा ) करनी चाहिए , दूसरों को उसके विषय पर प्रवचन देना चाहिए और मूर्खों से शास्त्रार्थ बिल्कुल नहीं करना चाहिए । 

श्रुत पंचमी प्राकृत भाषा दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ।

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,
(संपादक - पागद भासा)
आचार्य - जैन दर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली 

एवं 

डॉ रुचि अनेकान्त जैन
जिन फाउंडेशन, नई दिल्ली

Tuesday, June 8, 2021

मोहो

संसारे णत्थि सुहं 
णाणमवि भासइ सो अत्थि मोहो ।
णियणाणेण सो णसइ,
णट्ठेण खलु हवइ मोक्खं ।।

संसार में सुख नहीं है यह जानकर भी उसमें  सुख भासित होता है यही मोह है । वह मोह निजातम के ज्ञान से नष्ट होता है । और उस उसके नष्ट होने से ही मोक्ष होता है । 

कुमार अनेकान्त
9/06/2021

अश्क ए बयां

*अश्क ए बयां*

*ये हुनर कहाँ से लाते हैं हुस्ने अश्क ?* 
*दर्द ए कोह तक ढहा देते हैं।*
*रहमानों की हालत न पूछो सनम* 
*ये तो क़त्ल कातिलों के कर देते हैं।।* 


✍️ कुमार अनेकान्त

Monday, May 31, 2021

भ्रूण हत्या (समकालीन प्राकृत कविता)

भूणहिंसाकेवलं,ण हवदि खलु दयाहीणे कलजुगे  ।
हिये वयपणं वि मरदि ,उजुहिययं दुल्लहा लोये ।।

निश्चित ही इस दयाहीन कलयुग में केवल भ्रूण हिंसा ही नहीं होती है बल्कि हृदय में बचपन भी मरता है,(क्यों कि)अब लोक में सरल हृदय मिलना दुर्लभ हो गया है ।

©कुमार अनेकान्त
1/06/2021



Monday, May 17, 2021

अव्यक्त दर्द

अव्यक्त दर्द !

मन के 
किसी कोने में
तुम्हारी यादों का 
एक संग्रहालय
हमेशा बना रहता है 
जिसमें हृदय के 
कुछ भग्नावशेष 
मन ही मन लिखे 
सैकड़ों पत्रों की 
पांडुलिपियां
बीते दिनों का पुरातत्व
और 
मन ही मन रची गईं
तुम्हारी असंख्य मूर्तियां
तुम्हारे सौंदर्य 
की कलाकृतियां
और 
पीड़ा जन्य कविताएं
अभी भी सहेज कर 
रखीं हुईं हैं 
इस आशा में कि
कोई तो होगा 
जो अनुसंधान करेगा 
और खोज लेगा 
अव्यक्त दर्द !

©कुमार अनेकान्त

18 मई विश्व संग्रहालय दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

Thursday, May 13, 2021

चिंता कैसी ?

*चिंता कैसी ?* 

यदि अभी तक बीमारी नहीं हुई है 
तो चिंता कैसी ?

यदि हो गई है 
तो चिंता कैसी ?
बस उपचार कीजिये ।


अगर जिंदा हैं 
तो चिंता कैसी ? 

और अगर नहीं हैं
तो.......

इसलिये 
चिंता नहीं चिंतन करें 
तनाव नहीं उपाय करें 

अब जो हैं 
उनकी फिक्र क्या ?
जो नहीं 
उनका जिक्र क्या ?

सहज रहें 
और 
रहने दें

✍️कुमार अनेकान्त

Tuesday, May 11, 2021

जम्मदिवसस्स सुहकामणा (समकालीन प्राकृत कविता )

*जम्मदिवसस्स सुहकामणा*

*दुल्लहो मणुजम्मो य*, *णीरोगसरीरं धम्मसरणं य ।*
*ससगपरकल्लाणं य* ,
*जम्मदिअसो मंगलं होदु ।।*

यह मनुष्य जन्म , अनुकूल शरीर और धर्म की शरण मिलना बहुत दुर्लभ है ( अतः) स्व पर कल्याण के साथ आपका जन्मदिवस मंगलमय हो ।

डॉ अनेकान्त जैन 
12/05/2021

उपकार ( समकालीन प्राकृत कविता )

संयटे य सहजोगं,जीवणस्स रक्खणं उत्तमसया ।
उवयारविण्णावणं,दट्ठूण य पुण मरणं होइ ।।

संकट के समय सहयोग और जीवन की रक्षा हमेशा उत्तम होती है ( किन्तु) उस उपकार का विज्ञापन( एहसान जताना  ) देखकर उसका पुनः मरण हो जाता है ।अर्थात उसे ऐसा लगने लगता है कि इनके ऐसे सहयोग से तो अच्छा होता मैं बिना  सहयोग के ही रह जाता ।

कुमार अनेकान्त
11/05/2021

अगला नम्बर ......

एक से एक विकेट उखड़ रहे हैं इस मैच में , 
कहीं ये विपदा अपनों को न खा जाए ?
ऊपर से निश्चिंत दिखने का अभिनय करते करते,
कहीं अगला नम्बर हमारा न आ जाये ?

Friday, May 7, 2021

जीने की कला

जीने की कला

*जइ ण वसे पसासणं ,चइदूण पयं ठायव्वं अप्पम्मि ।*
*कुस्सी य णत्थि अत्थी , जस्स चागं खलु असंभवो ।।*

यदि प्रशासन न हो पा रहा हो तो (समय रहते ) पद त्यागकर आत्मा में स्थित हो जाना चाहिए ( क्यों कि ) वह कुर्सी है अर्थी नहीं है जिसको छोड़ना असंभव हो ।

कुमार अनेकान्त 
7/05/2021

Thursday, May 6, 2021

श्रद्धांजलि

*सद्धांयलि*

ॐ अर्हम

*दिवंगय-सुगइगमणं,परियणाणं य होदु धम्मसरणं ।*
*अणिच्चसंसारे खलु,भावदु वत्थुसरुवं णिच्चं ।।*

दिवंगत आत्मा का सुगति गमन हो, परिवारजनों को धर्म की शरण प्राप्त हो , इस अनित्य संसार में नित्य ही वस्तु स्वरूप का अवश्य चिंतन करें ।

*चक्खु अणीरो जड़ो,* *कण्णो सुण्णं हवइ दुक्खकाले* ।
*अहं वि सुण्णवय होमि*,
*पइदिणं वियोगं दट्ठूण।।*
 प्रतिदिन मनुष्यों का  वियोग देखकर इस दुख के समय में आंखें भी अश्रु रहित जड़ हो गईं हैं,कान सुन्न हो गए हैं और मैं भी शून्य सा हो गया हूँ ।

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
के साथ

डॉ अनेकान्त जैन
डॉ रुचि जैन, 
जिन फाउंडेशन ,
नई दिल्ली

शून्य हो गया हूँ

*शून्य हो गया हूँ*

*चक्खु अणीरो जड़ो,* *कण्णो सुण्णं हवइ दुक्खकाले* ।

*अहं वि सुण्णवय होमि*,
*पइदिणं वियोगं दट्ठूण।।*

कोरोना के कारण प्रतिदिन मनुष्यों का  वियोग देखकर इस दुख के समय में आंखें भी अश्रु रहित जड़ हो गईं हैं,कान सुन्न हो गए हैं और मैं भी शून्य सा हो गया हूँ ।
😥
कुमार अनेकान्त😳

Friday, April 30, 2021

दो अभिव्यक्ति

ये चले गए वो चले गए,
निज शोक को कैसे उठाएं ?
जी रहे हैं पर यकीं नहीं हैं ,
किस रोज किसका
नम्बर लग जाये ?

कुमार अनेकान्त


आंखों के लिए भी एक मास्क चाहिए ,
कि अब ये मंजर देखा नहीं जाता ।

कुमार अनेकान्त

भूले अपना धर्म महान

*भूले अपना धर्म महान*

कुमार अनेकान्त 

चारों ओर मचा कोहराम ,
कोई किसी के न आता काम ।
कैसी विपदा आयी मानव पर,
न सुनता खुदा
न गॉड भगवान ।।1।।

किसकी गलती कौन सुधारे ?
अच्छे अच्छे परलोक सिधारे ।
सारा सिस्टम हो गया नाकाम ,
किसको दोष दें ?
अब सब बदनाम ।।2।।

अपने कर्मों को भोगें हम,
साथ नहीं अब कोई 
हमदम ।
सुख में साथ सभी निभाते,
गम में अकेले रह गए हम ।।3।।

क्या हिन्दू मुस्लिम करते करते,
भूले हम मानवता महान ।
तुच्छ हल्की बातों में,
भूले अपना धर्म महान ।।4।।

क्षमा कर दें और माँग लें सभी से ,
कुछ नहीं ले जाएंगे हम ।
नाम यश पद पैसा प्रतिष्ठा ,
बस देखते रह जाएंगे हम ।।5।।

अकेले आये थे 
वैसे ही जाना है ,
तत्त्व ये शाश्वत कब माना है ?
कब किसका नम्बर आ जाये ,
जल्दी भज लो आतमराम ।।6।।

होता जगत स्वयं परिणाम,
मैं जग का करता क्या काम ?
सबके मंगल की कामना करते,
हो रहा आत्मस्थ अब अनेकान्त ।।7।।

Saturday, April 24, 2021

महावीर जन्मकल्याणक अष्टक


तीर्थंकर महावीर जन्मोत्सव प्राकृत अष्टक 

तित्थयर-महावीर-जम्मोस्सवो

(पागद-अट्ठगं )

णमो महावीरस्स 

पुप्फोतराभिहाणा तिेसिलागब्भासाढसिदछट्ठम्मि 

अवइण्णमहावीरो तित्थयरो य जइणधम्मस्स ।।1।।

भावार्थ -

स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान से च्युत होकर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन माता त्रिशला के गर्भ में जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर अवतरित हुए ।

तत्थ अट्ठदिवसाहिय णवमासपुण्णकरिदूण विदेहे  

वेसालीकुण्डउरे णाहसिद्धत्थनंदवत्ते ।।2।।

भगवं सुजम्मइसाए णवणवइपंचसयवस्सपुव्वम्मि ।

चेत्तसिदतेरसीए सुहे उत्तरफग्गुणिरिक्खे ।।3।।

भावार्थ

गर्भ में नौमाह आठ दिन पूर्ण करके भारत वर्ष के विदेह देश के वैशाली कुंडनगर में नाथ वंशी राजा सिद्धार्थ के नान्द्यावर्त नामक महल में ईसा के पांच सौ निन्यानबे (५९९)वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल त्रियोदशी के दिन शुभ उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् महावीर का शुभ जन्म हुआ।

दट्ठूण सिंहचिण्हं वीरदाहिणपायंगुट्ठणहम्मि ।

होहिइ खलु तित्थयरो णायगवरमोक्खमग्गस्स ।। 4।।

उस दिव्य बालक वीर के दाहिने पैर के अंगूठे के नाखून पर सिंह का चिन्ह देख कर (यह भविष्यवाणी कर दी गयी थी कि)निश्चित ही ( यह बालक धर्म तीर्थ का कर्त्ता )तीर्थंकर और  मोक्षमार्ग का श्रेष्ठ नेता होगा ।

                              सिंहवीरचिण्हमत्थि,तत्तो च तित्थयरमहावीरस्स । वेसालिथम्भस्स खलु पडीयभारयसरयारस्स  ।।5।।

तब से ही सिंह निश्चित ही तीर्थंकर महावीर का और वीरता का चिन्ह है तथा आज वैशाली का सिंह स्तम्भ तथा भारत सरकार का प्रतीक है ।

 पढमे खलु गणतंते वेसालीए होही जस्स जम्मं ।

धम्मदंसणे ठवीअ वि गणतंतं य महावीरो  ।।6।।

निश्चय ही विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में जिनका जन्म हुआ और उन भगवान् महावीर ने धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी गणतंत्र की स्थापना की ।

अप्पा सो परमप्पा णत्थि कोवि एगो इस्सवरो लोए ।

णत्थि कोवि कत्ता खलु लोअस्स य केवलं णाया ।।7।।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है ,लोक में कोई एक ईश्वर नहीं है ,निश्चित ही इस लोक का कोई भी कर्त्ता नहीं है और वह परमात्मा केवल ज्ञाता (दृष्टा) है ।

 जीवसयमेव कत्ता,सुहदुक्खाणं य सयं कम्माणं ।

सव्वकम्मनस्सिदूण, भत्तो वि य भगवन्तो हवइ ।।8।।

(उन्होंने समझाया कि) अपने सुख-दुखों का और अपने कर्मों का जीव स्वयमेव कर्त्ता है, अपने सभी कर्मों का नाश करके भक्त भी भगवान् हो जाता है । 


Thursday, April 1, 2021

समकालीन प्राकृत कविता 1 अप्रैल मूर्ख दिवस

मुक्खदिअसम्मि पढमो , अप्पइलमासे वित्तवस्सारम्भो ।
किं अच्छरियं य इमे ? जदि उलूयलच्छीवाहणं ।।

अप्रैल के प्रथम मूर्ख दिवस पर वित्त वर्ष प्रारम्भ होता है और इसमें आश्चर्य क्या है यदि लक्ष्मी का वाहन उल्लू है ?

Wednesday, March 31, 2021

कितना धर्म हो रहा है ?

*कितना धर्म हो रहा है ?*
 
 - कुमार अनेकान्त 

हे ! जिनवाणी,
हे ! पारस
हे ! जूम
हे ! फ़ेसबुक
हे ! व्हाट्सएप्प
तुमने बहुत कुछ देकर भी
हमसे कई चीजें छीन लीं
जैसे,
स्वाध्याय सभा में
बैठकर प्रवचन सुनना,खुद ग्रंथ पढ़ना,
सुबह जल्दी मंदिर जाकर अभिषेक देखने की ललक ,
साक्षात शांतिधारा 
करने का आनंद,
साधु संतों के साक्षात दर्शन,
साक्षात शिविर,
संगोष्ठियां ,
तीर्थ यात्राएं,
साधर्मियों से मिलना जुलना 
और बहुत कुछ ,
लॉक डाउन में 
मिली वैसाखी
कब हमारा 
एक मात्र सहारा 
बन गयी ,
पता ही नहीं चला ।
जहां श्रावक बिना देव दर्शन के भोजन नहीं करते थे ,
अब 
रजाई में चाय की चुस्कियों के साथ 
शांतिधारा देखते हैं,
बिना घर से निकले ,
बिना कुछ खर्चे ,
बिना शरीर हिलाए 
पूजन विधि विधान
हो रहा है ,
ऐसा लगता है 
जैसे
पूरा मोक्षमार्ग 
घर में ही घुस रहा है ,
हम बहुत खुश हैं 
वाह !
कितना
धर्म हो रहा है ।

Sunday, March 28, 2021

प्रिये ! मैं कैसे होली मनाऊं ?

*प्रिये !मैं कैसे होली मनाऊं ?* 

© कुमार अनेकान्त 

बीते साल मौत का मंजर देखा ,
उस दुख को भुला न पाऊँ।
कोरोना ने दिखाए कितने रंग,
बोलो कौन सा रंग लगाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कितने मजदूरों का दम टूटा ,
कितने बच्चों का दामन छूटा ।
कितनों की छूटी रोजी रोटी,
मैं कैसे खुशियां मनाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कितने संतों ने ली अंतिम सांसें , कितने परिजनों की छूटी सांसें ।
कितने गए अकाल 
जहां से ,
किस किस की याद दिलाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कोई घर का गुजर है जाता ,
तो अगला हर त्योहार अनरय कहाता ।
पूरा जगत संकट में समाये,
तब मैं कैसे रंग लगाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ?

Monday, March 22, 2021

कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं


कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं 

@कुमार अनेकान्त 

कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं ,
पेड़ जरा ज्यादा मासूम होते हैं ।
कम कमाते हैं लुटते हैं बहुत ज्यादा,
सच्चे आशिक से महरूम होते हैं ।।1।।

टेढ़े जो थे वे सदा बचते ही रहे,
अकाजी कब जाल में फंसते हैं ?
जिनकी फितरत है सदा सीधे रहना ,
उनकी गर्दन पे ही आरे चलते हैं ।।2।।

खुदगर्ज है जिनकी ईमानदारी,
वे गरीबी को भी ऐय्याशी कहते हैं ।
ईमान बन गया है जिनकी कमजोरी,
वो ही बेईमानों से जलन रखते हैं ।।3।।




Saturday, March 20, 2021

ख्वाहिशें नई नई

ख्वाहिशें नई नई

©कुमार अनेकान्त 
21/03/2021

आये तेरे दर पे परेशां ख्वाहिशों से ,
सजदे में मांग बैठे ख्वाहिशें नई नई ।

न कुछ ले न दे मुरताज़ इस जहां में ,
कैसे मुक्कमल होंगी हसरतें नई नई ।।

बिन हमसरी मुफ़लिस ही गए दर से ,
लेकर कहाँ से आएं इबादत नई नई ।

खुद को बिना जाने खुदा कैसे जानें ?
बुतों में ही खोजते हैं सूरत नई नई ।।

हर कोई है परेशां अपनी ही हसरतों से ,
अब कांटों में ही खुश हैं,
चाहतें नई नई ।।

Saturday, March 13, 2021

मन मेरा डूबता रहा

मन मेरा 
डूबता रहा 

©Kumar Anekant 
13/3/2021

नादान था जो
तुझ में खुद को खोजता रहा ।
मदहोश था पत्थर में दरिया ढूढ़ता रहा ।।1।।

वो मुझे अपनी तरह 
समझता रहा मुल्हिद ।
मैं जिसे खुदा समझकर पूजता रहा ।।2।।

धन की न थी शक्ति तो करता भला मैं क्या ?
मनोबल से ही हर जंग को जीतता रहा ।।3।।

वक्त से पहले नहीं मिलता पता ये था ।
फिर भी ये मन उसे हमेशा खोजता रहा ।।4।।

तैरना आता था मुझको फिर भी न जाने क्यों ?
गंगा में उसकी मन मेरा ये
डूबता रहा ।।5।।

Friday, January 29, 2021

तित्थयर-महावीरस्स गणतंतं (तीर्थंकर महावीर का गणतंत्र )

 तित्थयर-महावीरस्स गणतंतं

(तीर्थंकर महावीर का गणतंत्र )

पढमे खलु गणतंते वेसालीए होही जस्स जम्मं |

धम्मदंसणे ठवीअ वि गणतंतं भगवओ वीरो ||१||

निश्चय ही विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में जिनका जन्म हुआ उन भगवान् महावीर ने धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी गणतंत्र की स्थापना की |

अप्पा सो परमप्पा णत्थि कोवि एगो इस्सवरो लोए |

णत्थि कोवि कत्ता खलु ,लोअस्स य केवलं णाया ||२||

उन्होंने कहा कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है ,लोक में कोई एक ईश्वर नहीं है ,निश्चित ही इस लोक का कोई भी कर्त्ता नहीं है और वह परमात्मा केवल ज्ञाता (दृष्टा) है |

जीवसयमेव कत्ता,सुहदुक्खाणं य सयं कम्माणं |

सव्वकम्मनस्सिदूण, भत्तो वि भगवओ हवइ ||३||

उन्होंने समझाया कि अपने सुख-दुखों का और अपने कर्मों का जीव स्वयमेव कर्त्ता है, अपने सभी कर्मों का नाश करके भक्त भी भगवान् हो जाता है |

- कुमार अनेकांत
२६/०१/२०२१

Wednesday, January 20, 2021

समकालीन प्राकृत कविता 24 डिजिटल सिक्खा

सिक्खा कीरइ अंधो, डिजिटलो अंधयारो य सव्वत्थ ।

डाऊणलोडो ण होदि, रोट्टगो
गुगलत्तो कया ।।

भावार्थ 
सब तरफ डिजिटल अंधकार फैल गया है और ऑनलाइन शिक्षा विद्यार्थियों को अंधा कर रही है ।इन्हें कौन समझाए कि कितना भी कर लो रोटी गूगल से डाउन लोड नहीं होती ।
20/01/2021

समकालीन प्राकृत कविता 23(मुग्गस्स अप्पकहा )

*मुग्गस्स अप्पकहा*
( मुर्गे की आत्मकथा )

मम य णत्थि मरणभयं,वड्डफ्फुसंकमणं जदि भविस्सदि ।
पालणं मारणत्थं,
सामिसा य हरन्ति जीवणं ।।


भावार्थ - 

मुझे बर्डफ्लू संक्रमण यदि हो जाएगा तो भी मरण से भय नहीं है,(क्यों कि)
हमारा तो पालन भी मारण के लिए ही किया जाता है और मांसाहारी लोग हमारा जीवन हरण कर लेते हैं ।
अनेकान्त
10/1/2021

Friday, January 15, 2021

समकालीन प्राकृत कविता 22 उपयोग की पतंग

सगोवओयपतंगं , ताव उड्डेइ अज्झप्पागासे ।
जाव खलु तस्स डोरा,
संजुत्तो जइ सग अप्पणा ।।

अपने उपयोग(चैतन्य) की पतंग अध्यात्म के आकाश में तब तक सही उड़ती है जब तक डोर खुद से जुड़ी हो ।
टूटी डोर की पतंग स्वछंद होकर कहाँ गिरती है? कितना गिरती है ? कौन सी वासना उसे लूट लेती है पता ही नहीं चलता ।

- कुमार अनेकान्त
14/1/2021
makar sankranti

Friday, January 8, 2021

जिणधम्मो

जत्थत्थि अणेयंतं ,सियवायं
सुणयं रयणत्तयं य ।

अहिंसा संजमजत्थ,  तत्थ खलु होई जिणधम्मो ।।

जहां अनेकान्त है,स्याद्वाद है,सुनय है,रत्नत्रय है,अहिंसा है और संयम है,निश्चित रूप से वहीं जिन धर्म है ।