Monday, February 19, 2024

णमो आयरियविज्जासायराणं


*णमो आयरियविज्जासायराणं*

समणपरंवरसुज्जं
सययसंजमतवपुव्वगप्परदं।
चंदगिरिसमाधित्थं 
णमो आयरियविज्जासायराणं ।।


श्रमण परम्परा के सूर्य , सतत संयम तप पूर्वक आत्मा में रमने वाले और चंद्रगिरी तीर्थ पर समाधिस्थ (ऐसे) आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी को हमारा कोटिशः नमोस्तु । 

विनयवंत 

प्रो फूलचंद जैन प्रेमी
डॉ मुन्नी पुष्पा जैन ,वाराणसी

प्रो अनेकांत कुमार जैन ,
डॉ रुचि जैन ,नई दिल्ली 

एवं 

सम्पूर्ण पागद-भासा परिवार

स्वावलंबन सूत्र

सावलंबणसुत्तं

सुणरट्ठो सुणभरहो
सिघ्घं सूणसिंहासणसंदेसं
सावलंबणसुत्तं
गोकरघाभारदभासा च

सुनो राष्ट्र ! ,सुनो भारत ! (आचार्य विद्यासागर जी के बिना अब) सूने पड़ चुके इस सिंहासन का संदेश भी शीघ्र सुनो ! कि गोरक्षा, हथकरघा,भारतनाम और मातृभाषा ये चार देश के स्वावलबनसूत्र मूलस्तंभ हैं ।

कुमार अनेकांत 
19/2/24

Thursday, February 15, 2024

वो मुझसे प्यार नहीं करती

वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

रोज सुबह पांच बजे उठती है
बच्चों का टिफिन बनाती है
और मेरे लिए चाय 
अखबार छुपा देती है 
ताकि मैं जल्दी नहाकर
मंदिर हो आऊं 
जबरजस्ती मॉर्निंग वॉक पर 
ले जाती है
मेरा मनपसंद खाना भी नहीं देती है 
वैसा खाना देती है जिससे 
वजन न बढ़े और मैं स्वस्थ्य रहूं 
मुझे क्या पहनना है 
किस रंग का पहनना है
अधिकार पूर्वक तय करती है 
विश्वविद्यालय जाते समय 
पर्स, मोबाइल,पेन,रुमाल
बैग हाथ में दे देती है 
वहाँ पहुंचते ही फ़ोन करती है 
अच्छे से पहुंच गए न 
लंच के बाद पूछती है 
दवा ले ली न
इस बीच कपड़े धो देती है 
बाजार से सामान ले आती है 
बच्चों को स्कूल से लाती है 
शाम को फोन करती है 
कब तक पहुंचोगे 
शाम के खाने को देर मत करना
घर आते ही पूछती है दिन कैसा रहा ?
मेरी उलझने सुनती है 
सुलझाने की कोशिश करती है
कुछ नया लिखने को प्रेरित करती है 
कोई महंगी चीज ख़रीदकर दो 
तो डांटती है क्या जरूरत थी इतने खर्चे की
उसे डांस नहीं आता पर  
दिन भर नाचती है....सबकी सेवा में.... 
फोन करती है.....मगर मां बापू को, उनकी खैर पूछने,
सिर्फ अपना ध्यान नहीं रखती 
पूछो तो हँसकर कहती है 
आप ठीक तो मैं ठीक 
खुद के लिए नहीं जीती 
लेकिन मुझे कभी 
एक बार भी आई लव यू नहीं बोलती 
मगर कोई कह सकता है ?
वो मुझसे प्यार नहीं करती ?

जो खुद गुलाब है 
उसे क्या गुलाब दूं ?
जिसका हर दिन वेलेंटाइन है 
उसपर जान कुर्बान दूं ।

- कुमार अनेकान्त १४/०२/२०१८ 
(उसकी बिना अनुमति के एक दिन बाद प्रकाशित)

Tuesday, February 13, 2024

प्रेम चतुर्दशी

वेलेंटाइन डे स्पेशल 
प्रेम चतुर्दशी विशेष

पेमचउद्दसी दिणे,
जीवं णेहं कीरदि णाजीवं ।
अजीवस्स उवयोगो,
ण विवरीयं खलु कादव्वं ।।

प्रेम चतुर्दशी के दिन यह शिक्षा लेनी चाहिए कि चेतन को प्रेम करना चाहिए अचेतन को नहीं । अचेतन का उपयोग करना चाहिए । इसके विपरीत (लोग अचेतन से प्रेम करते हैं और चेतन का उपयोग )निश्चित रूप से ऐसा नहीं करना चाहिए । 
चेतन से प्रेम और अचेतन का उपयोग - यही सच्चे प्रेम की सनातन परंपरा है ।

कुमार अनेकांत 
14/02/24

सहजता ही प्रेम है

Monday, February 12, 2024

निजदोषों का दर्शन ( प्राकृत गाथा )

दस्सदि खलु णियदोसं ,
सज्झायेण णाभावदोसाणं ।
अभावो य होदि तस्स ,
तवचरित्ताप्पाणुभवेण ।।

स्वाध्याय से निजदोषों का दर्शन तो होता है किंतु उन दोषों का अभाव नहीं होता ,उन दोषों का अभाव तप चारित्र और आत्मानुभव से ही होता है । 

©कुमार अनेकांत
12/2/24

Sunday, February 11, 2024

विपत्ति काल ( प्राकृत गाथा )

पस्सइ कालगहवत्थु
परदोसं मणुसो विवत्तिकाले ।
ण  पस्सइ कम्मदोसा,
अम्मं कहं बबइबबूलेण ।।

बुरे दिन आने पर मनुष्य कालसर्प दोष,ग्रह दोष,वास्तु दोष , परिजनों के दोष आदि बाहर में ही दोष तो देखता है किन्तु स्वयं अपने कर्मों के दोष नहीं देखता । यह भी विचारना चाहिए कि बबूल के बोने पर आम भला कैसे हो सकता है ? 

कुमार अनेकांत 
12/2/24

Friday, February 9, 2024

ठंडक ( Prakrit poetry)

ठंडक


असुहचिंतगविपदे वि
कीरइ य सहाणुभूइपदंसणं ।
कट्ठेहं दंसणेण ,
हिययो तस्स होइ सीयलं ।।

मेरा अहित चिंतन करने वाला भी विपदा के समय मेरे पास आकर सहानुभूति प्रदर्शित करता है ,(ऐसा क्यों न हो ) मैं कष्ट में हूँ ,ऐसा देखकर उसके हृदय को ठंडक जो पड़ती है ।

©कुमार अनेकांत 
10/2/24

Thursday, February 8, 2024

ज्येष्ठ प्रेम ( प्राकृत काव्य )

ज्येष्ठ प्रेम 

जेट्ठोमि सया अहं 
तुम्हत्तो तुम्हे य वसइ हियये।
जइ च इच्छदि सम होदु
सगहियये खलु वसदु ममावि ।।

मैं तुमसे सदा ज्येष्ठ ( सिद्ध होता) हूँ ,क्यों कि तुम मेरे हृदय में रहते हो ।और यदि (तुम भी) मेरे समान(  ज्येष्ठ) होना चाहते हो तो मुझे भी अपने हृदय में जरूर बसा लो ।

©कुमार अनेकांत
10/2/24

Monday, February 5, 2024

व्यर्थ प्रयत्न ( प्राकृत गाथा )

अंधयारे य छाया ,
जरे काया मरणमाया कयावि ।
ण खलु ददइ सहजोगं,
पयत्तं जहासक्कं  ।।
अंधकार में छाया ,बुढ़ापे में  काया और मृत्यु के समय माया,निश्चित ही कभी भी सहयोग नहीं देती है ,यथा शक्ति कितना भी प्रयत्न कर लो ।

©कुमार अनेकांत 
6/2/24

समय का सदुपयोग (उग्गाहा)

समय का सदुपयोग 
(उग्गाहा)

ण भविस्सइ समागमो,
सया भविस्सइ ण अहं भविस्सामि।
जदि दुवे य भविस्सन्ति,
ण भावं सिग्घधम्मं करिदव्वं ।।



यह सत्समागम हमेशा नहीं रहेगा ,यदि रहा तो हम न रहेंगे ,यदि ये दोनों  रहे तो जरूरी नहीं कि वैसे शुद्ध भाव रहें ,जैसे आज हैं । अतः यथा शीघ्र धर्म (आत्मानुभव)कर लेना चाहिए ।

कुमार अनेकांत 
5/02/23

Sunday, February 4, 2024

महत्वपूर्ण शेर शायरी (स्वरचित और संकलित)

क्या अजब जज़्बा है इश्क़ करने का 
उम्र जीने की है और शौक़ मरने का ॥

यक़ीनन ढूँढने होंगे हज़ारों बाग़बाँ हमको 
मगर उन पर भी नज़रें हों जो शाखें तोड़ देते हैं

की वो वक्त गुजर गया
जब तेरी हसरत थी हमें
अब तू खुदा भी बन जा
तो भी हम सजदा नहीं करेंगे...


तेरे सजदे के वास्ते नहीं चाहता खुदा होना 
खुद को जान लूँ तो खुदा हो जाऊं मैं

सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह ।
वहाँ हम इबादत को जाते हैं सैर को नहीं ।।
©कुमार अनेकान्त
24/11/22

मौत तो बहाना था उसूल उसे निभाना था।
वरना पल पल मरे हैं तेरे बिन जीते जीते ।।        ©-कुमार अनेकान्त                        

खुद अटकने से अटका , कोई और नही अटकाता ।                       
खुद को भूला, भटका , कोई और नहीं भटकाता।।-
   -   कुमार अनेकान्त (०५/०२/२०१६)

उधर दस वर्फ की चादर में सो गये,
ताकि हम रजाईयों में  सोते रहें ।
इधर दस ने तोड़ दीं सुहागा चूड़ियां ताकि
करोड़ों कलाईयों के कंगन यूं ही बजते रहें।।
-कुमार अनेकान्त

कायनात भी चाहे उसके खिलाफ हो,
पर वोट उसे ही दें जिसकी नीयत साफ़ हो |
©कुमार अनेकांत 2014

"गर तू जिंदा है तो ज़िन्दगी का सबूत दिया कर !
वरना, ये ख़ामोशी तो कब्रिस्तान में भी बिखरी देखी है
हमने !!"

अभी साजों के तराने बहुत हैं 
अभी जिंदगी के बहाने बहुत हैं 
ये दुनिया हकीकत की कायल नहीं है 
फसाने सुनाओ फसाने बहुत हैं ।

वो कतरा होकर भी, आपे से बाहर.. है!!
हम दरिया होकर भी, अपनी हद में रहते हैं..!!


मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है 
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है 

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है 
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है 

नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए 
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है 

थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें 
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है 

बहुत बेबाक आँखों में तअ'ल्लुक़ टिक नहीं पाता 
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है 

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का 
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है 

मेरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो 
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है 
               वसीम बरेलवी

समय ने जब जब अंधेरों से  दोस्ती की है
हमने अपना घर फूंक कर रोशनी की है


तुम्हें जीने में आसानी बहुत है।
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है।।


लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है
तुम झुठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है 
इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें 
कानून तुम्हारा है, दरबार तुम्हारा है
सूरज की तपन तुमसे बर्दास्त नही होती 
एक मोम के पुतले सा किरदार तुम्हारा है
वैसे तो हर एक शह में जलवे हैं तुम्हारे ही
दुश्वार बहुत लेकिन दीदार तुम्हारा है


एक वक्त था जब यकीं तेरे  जादू पर भी था
अब तो तेरी हकीकत भी शक के घेरे में है
…......


सच आज भी है खामोश कि खता न हो जाये।       झूठ चिल्ला रहा है कि सच बयां न हो जाये।।                     -कुमार अनेकान्त 3//4/2016

Saturday, February 3, 2024

निंदा....( प्राकृत गाथा )

निंदा....

करदु करदु मम णिंदा , गइदूण पइगेहे य जहासक्कं ।
पसिद्धो होदि तुम्हे
वि निंदगसम्माटरूवेण ।। 


करो करो खूब करो,बल्कि घर घर जाकर मेरी निंदा जितनी कर सको उतनी करो ,(क्यों कि) इससे तुम भी निंदक सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे ।

©कुमार अनेकांत 
2/2/24