Friday, February 9, 2024

ठंडक ( Prakrit poetry)

ठंडक


असुहचिंतगविपदे वि
कीरइ य सहाणुभूइपदंसणं ।
कट्ठेहं दंसणेण ,
हिययो तस्स होइ सीयलं ।।

मेरा अहित चिंतन करने वाला भी विपदा के समय मेरे पास आकर सहानुभूति प्रदर्शित करता है ,(ऐसा क्यों न हो ) मैं कष्ट में हूँ ,ऐसा देखकर उसके हृदय को ठंडक जो पड़ती है ।

©कुमार अनेकांत 
10/2/24

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