समय का सदुपयोग
(उग्गाहा)
ण भविस्सइ समागमो,
सया भविस्सइ ण अहं भविस्सामि।
जदि दुवे य भविस्सन्ति,
ण भावं सिग्घधम्मं करिदव्वं ।।
यह सत्समागम हमेशा नहीं रहेगा ,यदि रहा तो हम न रहेंगे ,यदि ये दोनों रहे तो जरूरी नहीं कि वैसे शुद्ध भाव रहें ,जैसे आज हैं । अतः यथा शीघ्र धर्म (आत्मानुभव)कर लेना चाहिए ।
कुमार अनेकांत
5/02/23
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