Sunday, February 4, 2024

महत्वपूर्ण शेर शायरी (स्वरचित और संकलित)

क्या अजब जज़्बा है इश्क़ करने का 
उम्र जीने की है और शौक़ मरने का ॥

यक़ीनन ढूँढने होंगे हज़ारों बाग़बाँ हमको 
मगर उन पर भी नज़रें हों जो शाखें तोड़ देते हैं

की वो वक्त गुजर गया
जब तेरी हसरत थी हमें
अब तू खुदा भी बन जा
तो भी हम सजदा नहीं करेंगे...


तेरे सजदे के वास्ते नहीं चाहता खुदा होना 
खुद को जान लूँ तो खुदा हो जाऊं मैं

सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह ।
वहाँ हम इबादत को जाते हैं सैर को नहीं ।।
©कुमार अनेकान्त
24/11/22

मौत तो बहाना था उसूल उसे निभाना था।
वरना पल पल मरे हैं तेरे बिन जीते जीते ।।        ©-कुमार अनेकान्त                        

खुद अटकने से अटका , कोई और नही अटकाता ।                       
खुद को भूला, भटका , कोई और नहीं भटकाता।।-
   -   कुमार अनेकान्त (०५/०२/२०१६)

उधर दस वर्फ की चादर में सो गये,
ताकि हम रजाईयों में  सोते रहें ।
इधर दस ने तोड़ दीं सुहागा चूड़ियां ताकि
करोड़ों कलाईयों के कंगन यूं ही बजते रहें।।
-कुमार अनेकान्त

कायनात भी चाहे उसके खिलाफ हो,
पर वोट उसे ही दें जिसकी नीयत साफ़ हो |
©कुमार अनेकांत 2014

"गर तू जिंदा है तो ज़िन्दगी का सबूत दिया कर !
वरना, ये ख़ामोशी तो कब्रिस्तान में भी बिखरी देखी है
हमने !!"

अभी साजों के तराने बहुत हैं 
अभी जिंदगी के बहाने बहुत हैं 
ये दुनिया हकीकत की कायल नहीं है 
फसाने सुनाओ फसाने बहुत हैं ।

वो कतरा होकर भी, आपे से बाहर.. है!!
हम दरिया होकर भी, अपनी हद में रहते हैं..!!


मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है 
जो दिल में है उसे आँखों से कहलाना ज़रूरी है 

उसूलों पर जहाँ आँच आए टकराना ज़रूरी है 
जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है 

नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए 
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है 

थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें 
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है 

बहुत बेबाक आँखों में तअ'ल्लुक़ टिक नहीं पाता 
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है 

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का 
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है 

मेरे होंटों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो 
कि इस के बा'द भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है 
               वसीम बरेलवी

समय ने जब जब अंधेरों से  दोस्ती की है
हमने अपना घर फूंक कर रोशनी की है


तुम्हें जीने में आसानी बहुत है।
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है।।


लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है
तुम झुठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है 
इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें 
कानून तुम्हारा है, दरबार तुम्हारा है
सूरज की तपन तुमसे बर्दास्त नही होती 
एक मोम के पुतले सा किरदार तुम्हारा है
वैसे तो हर एक शह में जलवे हैं तुम्हारे ही
दुश्वार बहुत लेकिन दीदार तुम्हारा है


एक वक्त था जब यकीं तेरे  जादू पर भी था
अब तो तेरी हकीकत भी शक के घेरे में है
…......


सच आज भी है खामोश कि खता न हो जाये।       झूठ चिल्ला रहा है कि सच बयां न हो जाये।।                     -कुमार अनेकान्त 3//4/2016

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