ज्येष्ठ प्रेम
जेट्ठोमि सया अहं
तुम्हत्तो तुम्हे य वसइ हियये।
जइ च इच्छदि सम होदु
सगहियये खलु वसदु ममावि ।।
मैं तुमसे सदा ज्येष्ठ ( सिद्ध होता) हूँ ,क्यों कि तुम मेरे हृदय में रहते हो ।और यदि (तुम भी) मेरे समान( ज्येष्ठ) होना चाहते हो तो मुझे भी अपने हृदय में जरूर बसा लो ।
©कुमार अनेकांत
10/2/24
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