Thursday, February 8, 2024

ज्येष्ठ प्रेम ( प्राकृत काव्य )

ज्येष्ठ प्रेम 

जेट्ठोमि सया अहं 
तुम्हत्तो तुम्हे य वसइ हियये।
जइ च इच्छदि सम होदु
सगहियये खलु वसदु ममावि ।।

मैं तुमसे सदा ज्येष्ठ ( सिद्ध होता) हूँ ,क्यों कि तुम मेरे हृदय में रहते हो ।और यदि (तुम भी) मेरे समान(  ज्येष्ठ) होना चाहते हो तो मुझे भी अपने हृदय में जरूर बसा लो ।

©कुमार अनेकांत
10/2/24

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