निंदा....
करदु करदु मम णिंदा , गइदूण पइगेहे य जहासक्कं ।
पसिद्धो होदि तुम्हे
वि निंदगसम्माटरूवेण ।।
करो करो खूब करो,बल्कि घर घर जाकर मेरी निंदा जितनी कर सको उतनी करो ,(क्यों कि) इससे तुम भी निंदक सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे ।
©कुमार अनेकांत
2/2/24
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