मैं नाविक तू नाव हमारी
मत तुम मुझको विद् कह पुकारो
यह मात्र भ्रमों का उपवन है
क्यों कहूँ एक ही बात सलोनी
यहां प्रति वर्ष ही तो मंथन है
परिवर्तन पल में परिणामों का
ज्ञान ऋजुता क्यों कर पाए
बात अधूरी ही रहती है
वह कभी भी पूरी हो न पाए
स्वयं से छल विचित्र दशा है
स्वयं को भूला लुटा पड़ा है
पर भक्ति अनुराग सुधा में
सारा जीवन निःस्वार्थ लुटा है
एक पल भी चैन नहीं
पर ज्ञेयों में मन यह उलझे
स्वयं के पद की अभिलाषा
फिर करनी में कैसे सुलझे
रुक जाए ही तुझ पर मेरी
चंचल ज्ञान की परिणति सारी
फिर क्षण में तारें भव सागर
बन मैं नाविक तू नाव हमारी
प्रिय DrRuchi Anekant Jain को
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
13/04/23