Saturday, May 30, 2020

कैसे कर दूँ माफ़

कैसे कर दूँ माफ़  ?

खुद कुछ न करें कोई करे तो बनते बाधाएं ।
खुदा भी न जाने सबकी कैसी मन की पीड़ायें ।।

खुद के सिक्के में हो खोट तो इल्ज़ाम दे किस पर ।
गैर पड़ जाते हैं भारी सदियों की मुहब्बत पर ।।

जो था विश्वस्त उसे कोई कैसे बदल देगा ?
चिंगारी न हो तो गैर कैसे हवा देगा ?

न गिला उससे जो तुम्हें भड़काए मेरे खिलाफ ।
भड़के तो तुम हो खता ये कैसे कर दूँ माफ़ ?।।

©कुमार अनेकांत

Friday, May 29, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १६ अनुप्रेक्षा जन्मदिवस

समकालीन प्राकृत कविता १६ अनुप्रेक्षा जन्मदिवस 

मुण्णीफूलचंदणं य
पोइ पुत्ती रुइ-अणेयन्तणं ।
सुहं पियजम्मदिवसो  
सुणयस्स बहणाणुवेक्खा ।।

फूलचंद जी और मुन्नी जी की पोती और
अनेकांत -  रुचि की पुत्री , सुनय की बहन प्रिय अनुप्रेक्षा का जन्म दिवस शुभ हो ।

प्रिय अनुप्रेक्षा को जन्म दिवस की 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ।

अनेकांत 
३०/०५/२०२०

Wednesday, May 27, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १५ श्रुत पंचमी

समकालीन प्राकृत कविता 
श्रुत पंचमी महोत्सव 

णमो धरसेणाणं य
भूयबलीपुप्फदंताणं सयय ।
सुयपंयमीदियसे य
लिहीअ सुयछक्खंडागमो ।।

भावार्थ :
श्रुत पंचमी के दिन भगवान महावीर की मूल वाणी द्वादशांग के बारहवें अंग दृष्टिवाद के  अंश रूप श्रुत अर्थात्
षटखंडागम को लिखने वाले आचार्य पुष्पदंत और भूतबली तथा उन्हें श्रुत का ज्ञान देने वाले उनके गुरु आचार्य धरसेन को मेरा सतत नमस्कार है ।

कुमार अनेकांत 
२७/०५/२०२०
श्रुत पंचमी 

Monday, May 25, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १३-१४ पाप

ण मण्णदि सयं अप्पा,
जेट्ठपापं खलु सव्वपापेसु ।
तेसु य सादो उत्तं
पापिस्स लक्ख‌णं जिणेहिं ।।

भावार्थ :
निश्चित ही स्वयं को आत्मा न मानना सभी पापों में सबसे बड़ा पाप है । और जिनेन्द्र भगवान् ने पापों में स्वाद लेना ही पापी का लक्षण बताया है ।

दुक्खी होदि य हिंसा ,
झूठकत्ता मण्णदि परदव्वस्स  ।
परं मम चोइमुच्छा 
परसुहबुद्धि कुसीलो होदि ।।

भावार्थ 
दुखी होना ही हिंसा है , स्वयं को पर का कर्ता मानना ही झूठ है , पर को अपना मानना ही चोरी है ,पर में मूर्च्छा ( आसक्ति)ही परिग्रह और पर में सुख बुद्धि ही कुशील होता है ।


कुमार अनेकांत

Sunday, May 24, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १२ ,संकप्पदिवसो

*संकप्पदिवसो*

*पंडिय हुकमचंदस्स जम्मदिवसेव सुसंकप्पदिवसो।*

*सहस्सा सिस्सा सयय जिणदंसणं पसारिस्सन्ति।।*

भावार्थ :

पंडित हुकुमचंद भारिल्ल जी का जन्मदिन ही वह सु संकल्प दिवस है जिसमें उनके हजारों शिष्य जिनदर्शन का प्रचार प्रसार करेंगे - (ऐसा संकल्प करते हैं ) ।

कुमार अनेकांत 
२५/०५/२०२०

Saturday, May 23, 2020

समकालीन कविता १२ , योगी ऋषभदेव

विश्व योग दिवस

समकालीन कविता १२ , योगी ऋषभदेव


उसहो जोगो  उत्तं  ,
पढमो कीरइ आसणं तवझाणं |
सुद्धोवओगधम्मं,
आदा मे संवरो जोगो ||

प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सर्वप्रथम योग विद्या का उपदेश दिया | उन्होंने सर्वप्रथम आसन ,तप, ध्यान और शुद्धोपयोग धर्म को प्राप्त किया और उपदेश दिया कि आत्मा ही संवर और योग है |


@कुमार अनेकांत
२५/०५/२०२० 

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

(गाहा छंद )

करुणाभावे कूरो वि
हव‌इ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।

भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।

कुमार अनेकांत 
24/05/2020

Friday, May 22, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १० पंचमकाल में श्रावकधर्म

पंचमकाल में श्रावकधर्म

पूया सज्झाय सयय,
दाणं मुख्खं खलु सावयधम्मे ।
पंचमयाले रयणं ,
अणुव्व‌ओ हव‌इ भूसणं ।।

भावार्थ -

पंचमकाल में श्रावक धर्म में सतत सच्चे देव शास्त्र गुरु की पूजा ही सम्यग्दर्शन,सतत स्वाध्याय ही सम्यग्ज्ञान और सत्पात्र को दान ही सम्यग्चारित्र है । यह ही सामान्य श्रावक का मुख्य रत्नत्रय है । यदि वह अणुव्रत धारण कर लेता है तो वह श्रावक के लिए आभूषण के समान होता है।

कुमार अनेकांत 
२३/०४/२०२०

Wednesday, May 20, 2020

समकालीन प्राकृत कविता - ९ ऑन लाइन मोक्ष

समकालीन प्राकृत कविता - ९

ऑन लाइन मोक्ष

सिघ्घं हवन्ति णाणं ,
पूयापाठं विहाणं झाणं य ।
अप्पाणुभवो होज्ज
मोक्खं वि आणलाइणेण ।।

भावार्थ :

आज आनलाइन माध्यम से
ज्ञान,पूजापाठ,विधान और ध्यान भी बहुत शीघ्रता से हो रहे हैं अब वह दिन दूर नहीं जब आत्मानुभव और 
मोक्ष भी ऑनलाइन ही होंगे ।

कुमार अनेकांत 
२०/०५/२०२०














Monday, May 18, 2020

समकालीन प्राकृत कविता – ८ ‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’


समकालीन प्राकृत कविता – ८

        (उग्गाहा छंद )

‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’

अप्पसहावो गच्छइ ,ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |
जो गच्छइ सो य ण मम,जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||

भावार्थ –

आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |

@कुमार अनेकांत 
17/05/2020

Sunday, May 17, 2020

णेणागिरि-वेहवं

णेणागिरि-वेहवं

(नैनागिरि वैभवं )

(उग्गाहा छंद )

णमो पासणाहाणं
रेसिंदगिरिम्मि तव समवसरणं ||
सयय णमो सिद्धाणं
इंदवरगुणसायरमुणिन्दाणं ||१||

भावार्थ -
जिन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का समवशरण रेसिंदगिरि तीर्थ पर आया था उन्हें  तथा जिन इन्द्रदत्त, वरदत्त, गुणदत्त ,सायरदत्त और मुनीन्द्रदत्त मुनियों ने यहाँ से निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध अवस्था प्राप्त की उन्हें तथा सिद्धों को हमारा सतत नमस्कार है |

सिद्धसिला परिपुण्णं,
णइ सेमरापठार-सेलचित्तं |
सरोवरमहावीरो ,     
सोहइ मज्झे णेणागिरितित्थं ||२||

भावार्थ –
सेमरा पठार नदी के पास शैल चित्रों से परिपूर्ण सिद्धसिला से और मध्य में महावीर सरोवर से नैनागिरि तीर्थ शोभायमान हो रहा है |
भव्वो विसालपडिमा ,
दंसणेण णमो मुणिसुव्वयाणं |
दौलरामवण्णी किय,
जिणभत्ता खलु करन्ति पूयाणं ||३||

भावार्थ –

भव्य विशाल प्रतिमा के दर्शन के माध्यम से तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ को मेरा नमस्कार है जहाँ बैठकर जिनेन्द्र भगवान् के भक्त श्रावक बाबा दौलतराम वर्णी जी द्वारा रचित पूजाओं को करते हैं |

तवो य णेणातित्थे,
सयय णमो विज्जासायाराणं |
णागो वि सुणइ धम्मं,
जं देसणा ‘अणेयंत’-पवयणं ||४||

भावार्थ –
नैनागिरी तीर्थ पर तपस्या करने वाले उन आचार्य विद्यासागर महाराज को भी मेरा सतत नमस्कार है जिनके    प्रवचन देशना में प्रतिपादित अनेकांतरूप धर्म को सर्प जैसे तिर्यंच भी भक्ति भाव पूर्वक सुनते हैं |

गणेसवण्णी तवसो,
सयय सेवइ सुरेसपसासणियं ।
भायउयफूलचंदा,
विउसां जणणी णेणागिरितित्थं।।५।।

भावार्थ - 
यह नैनागिरि तीर्थ, गणेशप्रसाद वर्णी जी की तपस्या का तीर्थ है , सुरेश जैन(IAS) प्रशासनिक की सतत सेवा का तीर्थ है और निश्चित ही प्रो.भागचंद जैन , प्रो उदयचंद जैन जैसे प्राकृत भाषा के तथा प्रो.फूलचंद जैन प्रेमी जैसे जैनदर्शन के विद्वानों को पैदा करने वाला तीर्थ है ।

प्रो अनेकांत कुमार जैन
१८/०५/२०२० 

Saturday, May 16, 2020

समकालीन प्राकृत कविता – ६, विश्व परिवार दिवस


समकालीन प्राकृत कविता – ६

विश्व परिवार दिवस

        (उग्गाहा छंद )

चागाणन्दो य जत्थ ,तत्थ विवाओ ण हवइ परिवारे |
जो सहइ सो खलु रहइ ,लोही य असहणसीला ण रहंति ||

भावार्थ

(त्याग में आनंद मानने वाला) त्यागानंद नामक व्यक्ति जिस घर में रहता है, उस परिवार में कभी विवाद नहीं होता | (परिवार में एक साथ रहने का नियम है कि) जो सहता है वह ही निश्रचित रहता है |लोभी और असहनशील लोग परिवार में एक साथ नहीं रहते |

@कुमार अनेकांत 
15/05/2020


Friday, May 15, 2020

समकालीन प्राकृत कविता ७ , बेवफाई

समकालीन प्राकृत कविता - ७

(गाथा छंद)

बेवफाई 

करोणाविसाणु-भयं,
भूकंपो य पइदिणं ण बीहेइ ।
बीहेइ मम लोये य ,
मत्ततव विवरीयसहावं ।।

भावार्थ -
करोना वायरस का भय और प्रतिदिन का भूकंप भी मुझे डराता नहीं है । इस लोक में यदि मुझे कोई डराता है तो मात्र तेरी बेवफाई ( तुम्हारा विपरीत स्वभाव) ।

© कुमार अनेकांत
drakjain2016@gmail.com
१६/०५/२०२०

समकालीन प्राकृत कविता - ५ जिओ बाहर , रहो भीतर

समकालीन प्राकृत कविता - ५

  जिओ बाहर , रहो भीतर  
        (उग्गाहा छंद )
जीववहो अप्पवहो,
हिंसा ण हवइ सुद्धोवओगम्मि |
धारयदु य अहिंसा ,
जीउ संसारम्मि , ठिदो अप्पम्मि ||
भावार्थ
जीववध आत्मवध ही है ,(इसलिए सभी जीवों की हिंसा से बचो )शुद्धोपयोग में हिंसा नहीं होती है ,इसलिए अहिंसा (शुद्धोपयोग )को धारण करो और जियो भले ही संसार में लेकिन रहो आपनी आत्मा में अर्थात् जियो बाहर लेकिन रहो भीतर |

@कुमार अनेकांत drakjain2016@gmail.com


15/05/2020

Thursday, May 14, 2020

समकालीन प्राकृत कविता- ४ , लॉक डाउन में ऑनलाइन तत्त्वज्ञान

*समकालीन प्राकृत कविता* - ४

 

*लॉक डाउन में ऑनलाइन तत्त्वज्ञान*

 

*जिणस्स य तच्चणाणं,*
*पसारयन्ति ऑणलइण सिविरेेण।*

*पण्डिया जिणधम्मस्स,*
*टोडरमलस्स णव वंसजा*।।

 

भावार्थ –

पण्डित टोडरमल जी के नव वंशज जिनधर्म-दर्शन के पण्डित ( युवा विद्वान) ऑनलाइन शिविर के माध्यम से जिनेन्द्रदेव का तत्त्वज्ञान प्रसारित कर रहे हैं |

@कुमार अनेकांत १४/०५/२०२० drakjain2016@gmail.com

Tuesday, May 12, 2020

समकालीन प्राकृत कविता -३ मजदूर और मजबूर

प्राकृत कविता -३ 

मजदूर और मजबूर 

मयऊरा जयदे खलु , वयं विवसो 
पहवाउजाणेहिं |
गच्छंति गेहगामा, सहस्समीला य पादेहिं || 

भावार्थ -

इस देश में मजदूर ही वास्तव में जयवंत हैं ,क्यों कि हम लोग पथ(रेल और बस) तथा वायुयान के द्वारा यात्रा के लिए (विवश) मजबूर हैं और वे हजारों मील अपने अपने गाँव और घर पैदल ही जा रहे हैं |

@कुमार अनेकांत १२/०५/२०२० 
drakjain2016@gmail.com

Monday, May 11, 2020

समाहिमरणभावणा




आयरिय-अणेयंतकुमारजइणेण विरइदं 


   
समाहिमरणभावणा

   (समाधि मरण भावना )

          (उग्गाहा छंद)


उवसग्गे दुरभिक्खे,असज्झरोगे च विमोयणकसाय ।
अब्भंतरबाहिरा च सल्लेहणपुव्वगं मरणसमाहि ।।1 ।।

असाध्य उपसर्ग  ,दुर्भिक्ष या रोग आदि आने पर अभ्यांतर और बाह्य कषाय के विमोचन के लिए सल्लेखना पूर्वक मरण समाधि कहलाती है ।। ।।

वित्तेण   वि खलु  मरिज्जदि,अवित्तेण  वि  खलु  अवस्स  मरिज्जदि  
जदि दोहिं   वि  मरिस्सदि ,वरं हि सुदाणेण खलु  मरिदव्वं ।।2।। 

धन के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, धन के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) सम्यक् दानपूर्वक ही मरण करना चाहिए।

परिग्गहेण  मरिज्जदि,अपरिग्गहेण वि अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि अपरिग्गहेण मरिदव्वं ।।3।। 

परिग्रह के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, परिग्रह के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अपरिग्रह धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

कसायेण वि मरिज्जदि,णिक्कसायेण वि अवस्स मरिज्जदि    
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि वीयराये मरिदव्वं ।।4।।
 
     कषाय के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, कषाय के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) वीतराग भाव पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

कोहेण वि मरिज्जदि,खंतिखम्मेण वि अवस्स मरिज्जदि 
         जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि खंतिखम्मेण मरिदव्वं ।।5।।

     क्रोध के होने पर भी निश्चित मरता है, क्रोध के न होने पर शांति और क्षमा में भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) शांति और उत्तम क्षमा पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

माणेण वि   मरिज्जदि ,मज्जवे वि खलु अवस्स मरिज्जदि
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं मज्जवधम्मेण मरिदव्वं ।।6।।

     मान के होने पर भी निश्चित मरता है, मार्दव होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम मार्दव धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
मायाए वि मरिज्जदि,अज्जवेण वि खलु अवस्स मरिज्जदि
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं    अज्जवधम्मे      मरिदव्वं   ।।7।।

     माया के होने पर भी निश्चित मरता है, आर्जव  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम आर्जव  धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

लोहेण वि     मरिज्जदि,सोयेण वि य खलु अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि,वरं हि सोयधम्मेण मरिदव्वं ।।8।।

     लोभ के होने पर भी निश्चित मरता है,  शुचिता(शौच धर्म ) के  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम शौच धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

संजमेण वि मरिज्जदि असंजमेण वि  अवस्स मरिज्जदि 
जदि दोहिं वि  मरिस्सदि ,वरं   संजमधम्मे     मरिदव्वं ।।9।।

संयम के होने पर भी निश्चित मरता है,  असंयम के  होने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम संयमधर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

                       एयंतेण  मरिज्जदि ,अणेयंतेण वि अवस्स मरिज्जदि 
    जदि दोहिं वि  मरिस्सदि वरं हि अणेयंतेण मरिदव्वं ।।10।।

एकांत मानने पर भी निश्चित मरता है,  अनेकांत मानने पर भी अवश्य मरता  है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अनेकांत धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।

                                                                     प्रो.अनेकांत कुमार जैन  

समकालीन प्राकृत कविता 1, मां

अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर 

नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना |
या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः ||
*णमो माआअ*
.............

*जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।*

*तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।*

भावार्थ - 

जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है  नमन है ।

कौशल तिवारी

समकालीन प्राकृत कविता २, करोना

प्राकृत कविता २

करोणाए पिहितं खलु ,विस्समहामारी भारहदेसे |
गेहे गेहे वि हवइ, जुद्धं कारणं चलदूरभासं ||


भावार्थ -

निश्चित ही विश्व महामारी करोना के कारण भारतदेश में बंदी है ,लेकिन घर परिवार में भी जो लड़ाईयां चल रहीं हैं उसका कारण मोबाइल फ़ोन है |

कुमार अनेकांत@
११/०५/२०२०

Monday, May 4, 2020

गृह योद्धा को सलाम

*गृह योद्धा को सलाम*

मैं नहीं बरसा 
सकता हैली कॉप्टर
से तुम्हारे ऊपर 
फूल 
न ही जलवा सकता
हूं हर देहरी पर 
दिये
और न ही बजवा 
सकता हूं 
छतों और बालकनियों से 
तुम्हारे सम्मान 
में थालियां और 
तालियां 

लेकिन 
करोना युद्ध में
हम सभी को
लॉक डाउन में
घर पर ही
अच्छे से रखकर
शुद्ध खाना खिलाकर
घर की साफ सफाई
रखकर
करोना से जो
लड़ाई तुमने 
लड़ी है 
उसके लिए 
कम हैं ये सभी 
सम्मान
हम तो हाज़िर
कर सकते हैं 
सिर्फ अपनी
जान 
*गृहिणी*

कुमार अनेकांत©️
४/५/२०२०

Sunday, May 3, 2020

अथाई

*अथाई*

काव्य का है बीज पर हुई नहीं सिंचाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।

नवोदित और उदित
का संगम,
सार्वभौमिक सुरों का सरगम ।
कैद रचनाएं चाहतीं थीं वर्षों से रिहाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।

आज नहीं तो कल मानेगा, 
विश्व हिंदी का दास बनेगा ।
देखेगा भारत की
साहित्यिक तरुनाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।

कबीर प्रसाद निराला बसते,
मीरा महादेवी 
सुभद्रा रमते ।
छुपे हैं अब तो हर दिल में परसाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।

दौलत भूधर बनारसी दास गढ़ेंगे,
सूर,तुलसी,रहीम
अब बन कर रहेंगे ।
रचेंगे अब तो महाकाव्य,
और बिहारी सा सत्साई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।

कुमार अनेकांत©️ 
३/५/२०२०