हर तरफ जरूरी है घूंघट
लज्जा में जरूरी,
मर्यादा में जरूरी,
मजबूरी नहीं
शान है घूंघट ।
संस्कृति की पहचान है घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।।
भोजन को जरूरी, पानी को जरूरी ।
तन को जरूरी,
मन को जरूरी ।।
सुरक्षा में ढांकने का नाम है घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।
धन को जरूरी,पुस्तक को जरूरी ।
इज्जत को जरूरी ,
वायरस की मजबूरी ।।
मुख का नया मास्क हैं घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।
खुद को जरूरी,आपको जरूरी।
बहू को जरूरी,
सास को जरूरी ।।
शाश्वत सौंदर्य बोध है घूंघट ,
हर तरफ जरूरी है घूंघट ।।
कुमार अनेकांत
२९/०६/२०२०