Monday, June 15, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १७ विपरीत युग और वक्ता


समकालीन प्राकृत  कविता

विपरीत युग और वक्ता

विवरीयो जुगो अत्थि वत्ता च किं करिस्संति भगवओ 
धम्मगिहत्थोवदिसइ बंभचारीबालपालणं ।।

यह युग भी विपरीत है और वक्ता भी ,तो भगवान् भी क्या करेंगें ?
गृहस्थ मोक्ष का उपदेश दे रहे हैं और ब्रह्मचारी सिखा रहे हैं कि बच्चों का लालन पालन कैसे किया जाय ?

कुमार अनेकांत 
१६/०६/२०२०

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