समकालीन प्राकृत
कविता
विपरीत युग और
वक्ता
विवरीयो जुगो
अत्थि वत्ता च किं करिस्संति भगवओ ।
धम्मगिहत्थोवदिसइ
बंभचारीबालपालणं ।।
यह युग भी
विपरीत है और वक्ता भी ,तो भगवान् भी क्या करेंगें ?
गृहस्थ मोक्ष
का उपदेश दे रहे हैं और ब्रह्मचारी सिखा रहे हैं कि बच्चों का लालन पालन कैसे किया
जाय ?
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