Saturday, June 6, 2020

णिय - बोह ( निज बोध )

णिय - बोह ( निज बोध )

अप्पणो सुद्धमप्पा ण पवयणेण ण बहुसुयेण लद्धं ।
झाणेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।१।।

भावार्थ 
अपना शुद्धात्मा न प्रवचन करने से , न बहुत प्रवचन सुनने से और न ही वह ध्यान से प्राप्त होता है । निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।

सज्झायेण ण लद्धं ण खलु वयमहव्वयोववासेहिं ।
पूयेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।२।।

भावार्थ 
वह स्वाध्याय के द्वारा,व्रत,महाव्रत उपवास और पूजा पाठ से भी नहीं प्राप्त होता है ।निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।


घोरतवेण ण लद्धं ण पंययल्लाणयमहोसवेहिं ।
मंतेण णा वि लद्धं णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।३।।

घोर तप और पञ्च कल्याणक आदि महोत्सवों,मंत्र तंत्र आदि से भी प्राप्त नहीं होता । निजात्मा में वह स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।


ववहारेण ण लद्धं ण कत्ताभाव- णिमित्तदिट्ठेण च ।
कालेण उवायाणेण
णियप्पम्मि परिणमदि सयमेव ।।४।।

भावार्थ 
वह शुद्धात्मा व्यवहार दृष्टि से, कर्त्ता भाव से और न ही निमित्त आधीन दृष्टि से प्राप्त होता है । वह समय आने पर निज योग्यता ( उपादान)  से निजात्मा में स्वयमेव ही परिणमित  होता है ।

कुमार अनेकांत 
७/०६/२०२०
रात्रि २:४२ 
स्थान : नई दिल्ली 

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