Thursday, June 18, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १८ पीड़ा

समकालीन प्राकृत कविता

पीड़ा

पीडियो सहइ पीडा तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ |
कसायेण सयं दहइ परकत्ताभावेण जीवो ||

भावार्थ

पीड़ित व्यक्ति तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से  स्वयं जलता रहता है |

कुमार अनेकांत
१८/०६/२०२०

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