Tuesday, June 23, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १९-२०

*णमो जिणाणं*

*णिरक्ख‌ओ गंथिणो,सेट्ठो गंथिओ णाणदाणी च* ।

*दाणिओ वरतावसी*,
*तावसिओ वराप्पदरसी ।।*

निरक्षर लोगों से ग्रंथ पढने वाले श्रेष्ठ ।उनसे भी अधिक ग्रंथ समझाने वाले श्रेष्ठ । ग्रंथ समझाने वालों से भी अधिक  श्रेष्ठ तप करने वाले हैं  तथा उनसे भी अधिक आत्मा का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ होते है।

*दुओ पंखओ जहा च*
*पक्खिणो उड्डंति णीलो ग‌अणे* ।
*तहा णाणचारित्तो जीवो लह‌इ च  मोक्खसुहं*।

    "जिस तरह दो पंखो के आधार से पक्षी आकाश में ऊँचा उडता है उसी तरह ज्ञान तथा  चारित्र से जीव मोक्ष को प्रााप्त करता है ।

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