Monday, December 18, 2023

भारत नामकरण

उसहसुपुत्तो भरदो 
चक्कवत्तीसासगो छक्खंडे
देसोभारदवस्सो
णामो वि जादो भरदत्तो 

तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत जो छह खंड के चक्रवर्ती सुशासक राजा थे , अपने देश का नाम भारतवर्ष उन्हीं भरत सम्राट के कारण पड़ा । 

इइ सुकहापुराणेसु ,
गायन्ति खलु वेदजइणागमेसु ।
खरवेलसिलालेहे ,
'भरधवस' खलु दसमपंतिम्मि ।। 

यह सुकथा वैदिक एवं जैन पुराणों एवं आगमों में खुलकर गाई गयी है तथा खारवेल के शिलालेख में भी भारत वर्ष यही नाम मिलता है । 

19/12/23
प्रो अनेकांत जैन 

Saturday, December 16, 2023

धर्म और तीर्थ की रक्षा के लिए प्राकृत भाषा में आह्वान

धर्म और तीर्थ की रक्षा के लिए प्राकृत भाषा में आह्वान
(चित्र - जब एक पत्थर का मनुष्य भी मूल स्तंभ को बचाने की कोशिश कर सकता है तो हम तो अभी जिंदा हैं )

धर्म बचेगा तो राष्ट्र बचेगा ,राष्ट्र बचेगा तो हम बचेंगे

किं य हवइ विरोहेण,सुधरणा पदंसणण्दोलणेण।
जीवोहं ण मरिदं सणातणजुज्झिस्सामि ।।

लोग पूछते हैं अहिंसक विरोध,धरना,प्रदर्शन और आंदोलनों से क्या होता है ? 
(आज के हिंसक युग में उससे कुछ ज्यादा होता हो या न होता हो किन्तु ) उससे यह पता चलता है कि मैं जीवित हूँ और अभी तक मरा नहीं हूँ और सनातन जैन धर्म और तीर्थ की रक्षा के लिए मृत्यु तक संघर्ष करता रहूंगा ।


प्रो अनेकांत कुमार जैन 
संपादक - पागद भासा (प्राकृत भाषा का प्रथम अखबार)
प्राकृत विद्याभवन ,नई दिल्ली

Friday, September 29, 2023

क्षमावाणी

क्षमावाणी 
के संदेश 
पोस्टकार्डों 
लिफाफों 
विज्ञापनों 
से निकलकर 
ट्विटर
फेसबुक
व्हाट्सअप
और इंस्टा पर आ गया है 
हम जगत के सभी जीवों को क्षमा कर रहे हैं और सभी जीवों से क्षमा 
मांग रहे हैं 
पर वे गिनती के कुछ जीव आज भी आपकी वाणी सुनने को तरस रहे हैं 
जिनके अपराधों को या जिनके प्रति अपराधों को 
हम आज भी विस्मरण कर रहे हैं ।

क्षमा आत्मा का 
और वाणी शरीर का धर्म है अपनी आत्मा की क्षमा को वाणी तक लाइये 
सिर्फ संदेश से न निपटाईये
'दूरवाणी' भी चलेगी 
पर दिल तो बनाइये 

- कुमार अनेकांत

Sunday, July 2, 2023

मेरे हस्ताक्षर

*हस्ताक्षर*
पूरा अपना नाम लिख दिया था ।
जब पहली बार हस्ताक्षर किया था ।।

सुंदर स्पष्ट अक्षरों में लिखे पूरे नाम को ।
पढ़ हंसी उड़ाई गई पढ़कर मेरे नाम को ।।

फिर समझाया गया कि स्पष्ट सुंदर अक्षर ।
चाहे कितने हो प्रिय, पर नहीं हैं वे हस्ताक्षर ।।

कोई भी नकल कर लेगा ।
लिख कर तुम्हें ठग लेगा ।।

फिर लिखकर कई कई बार 
कागज किये बेकार ।
आफत थी ऐसी आयी
खुद के नाम में गूद मचाई ।।

जब कुरूप किये अपने अक्षर ,
तब माने गए वे हस्ताक्षर ।
फिर पढ़ा लिखा सब कहने लगे ,
हम सुलेख का हश्र सहने लगे ।।

ज्यों नाम बढ़ा पद और रुतबा ,
करने पड़े सैकड़ों हस्ताक्षर ।
तब सिकुड़ते गए स्वयं ही ,
मेरी कलम से मेरे हस्ताक्षर ।।

मैं जितना बड़ा होता गया ,
उतने हस्ताक्षर छोटे होते गए ।
मेरे नाम के सारे अक्षर ,
मेरे ही मान में खोते रहे ।।

©कुमार अनेकान्त
3/07/2021

Wednesday, June 21, 2023

नेह निबंध


नेह निबंध

औपचारिकता में सिमट गए
अब तो सब संबंध
किसने किसको क्या दिया
बस इतने ही तटबंध

अभिवादन से भय लगता है
आहत करती हैं मुस्कानें
मार्केटिंग सी रिश्तेदारी हो गई
बस लगे हैं काम बनाने

प्रायोजित सा लगता है प्यार
बातें विज्ञापन सी लगती हैं
नजर न आती अब वे अखियां
जो वियोग में डब डब होती हैं

इंतजार करते हैं लोग अब
आप कब पधारेंगे यहां से
कुछ तो प्रतीक्षा में हैं हर पल
आप कब सिधारेंगे यहां से

अब तो भौतिक सारे संसाधन हैं
हर रिश्तों का आधार यहीं हैं
स्वारथ की इस निर्दय दुनिया में
सब कुछ है पर प्यार नहीं है

यथार्थ के धरातल पर जब पूरे हों प्रबंध
तभी लिखे जा सकते हैं हर नेह के निबंध

Monday, April 17, 2023

सुकून



सुकूं मिलेगा इसी मुकाम पर एक दिन ।
फ़र्क है किसकी कितनी भटकन बाकी है ।।

©कुमार अनेकान्त
18/04/2023

Tuesday, April 11, 2023

मैं नाविक तू नाव हमारी


मैं नाविक तू नाव हमारी 

मत तुम मुझको विद् कह पुकारो
यह मात्र भ्रमों का उपवन है 
क्यों कहूँ एक ही बात सलोनी 
यहां प्रति वर्ष ही तो मंथन है 

परिवर्तन पल में परिणामों का 
ज्ञान ऋजुता क्यों कर पाए 
बात अधूरी ही रहती है 
वह कभी भी पूरी हो न पाए 

स्वयं से छल विचित्र दशा है 
स्वयं को भूला लुटा पड़ा है
पर भक्ति अनुराग सुधा  में 
सारा जीवन निःस्वार्थ लुटा है 

एक पल भी चैन नहीं 
पर ज्ञेयों में मन यह उलझे 
स्वयं के पद की अभिलाषा 
फिर करनी में कैसे सुलझे 

रुक जाए ही तुझ पर मेरी 
चंचल ज्ञान की परिणति सारी 
फिर क्षण में तारें भव सागर 
बन मैं नाविक तू नाव हमारी 

प्रिय  DrRuchi Anekant Jain को
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ  
13/04/23

Monday, March 27, 2023

दादा तुम किस मिट्टी के बने थे

तुम किस मिट्टी के बने थे

- कुमार अनेकान्त

दादा 
तुम किस मिट्टी के बने थे 
असंख्य तूफानों के बीच भी 
अकम्पित तने थे 

नख से शिख तक 
तुम्हें घेरे रहने वाले 
कष्टों की छाया भी 
तुम्हारे चेहरे पर 
नहीं दिखती थी

विरोधियों की भीड़
आनंदित मुख पर 
चिंता का एक भी 
अक्षर नहीं लिखती थी 

अपने भीतर 
संघर्षों का जहर छिपाए 
किसी समुंदर की भांति 
शांत और गहरे थे तुम 

प्रवचन लेखन से 
मिथ्यात्त्व भगा देते थे 
उदास चेहरों को हँसाकर 
पल में बहला देते थे 

सहज ही रहते थे 
और वही सिखलाते थे 
जिनवाणी के सच्चे सपूत 
कहलाते थे 

जब कि हम और 
हमारे जैसे कई 
अपने राई से दुःख को 
पहाड़ सा बताते हैं 
कृत्रिम विकल्प लादे 
शिकवे शिकायत करते 
रोते और पछताते हैं

अभिलाषा बस यही है 
कि तुम्हारे व्यक्तित्व का 
एक अंश भी पा सकूँ 
मिथ्यात्व के अंधकार में 
सम्यक्त्व का दीप जला सकूँ 
प्रश्नों और समस्याओं 
के बीच भी 
तुम जैसा खुलकर गा सकूँ 
और अंत समय तक 
जिनवाणी सुना सकूँ 
सहज समाधि 
प्राप्त कर सकूँ ।

दादा
तुम किस मिट्टी के बने थे 
असंख्य तूफानों के बीच भी 
अकम्पित तने थे ।

(26/03/23 तत्त्ववेत्ता प्रख्यात जैनदार्शनिक अध्यात्म मर्मज्ञ गुरुवर डॉ हुकुमचंद भारिल्ल जी की  समाधि पर भावांजलि / विनयांजलि ।)

Wednesday, February 22, 2023

मुझे विकास चाहिए

मुझे 5 G नहीं 
बल्कि 
मुझे jio से पूर्व का भारत वापस चाहिए 

जब इंटरनेट का इस्तेमाल 
बहुत जरूरत के लिए ही होता था ।

OTT आम नहीं था 
देश का साधारण
युवा PubG के 
नशे में नहीं था 

शिक्षक साक्षात पढ़ाते थे 
और 
विद्यार्थी स्कूल और  कोचिंग जाकर ही 
पढ़ते थे 

बच्चे बाहर खेलने जाते थे 
युवा व्यायाम शाला या जिम जाते थे 
बुजुर्ग पार्क में टहलने जाते थे 

शाम के खाने पर सब एक जुट होकर कह कहे लगाते थे 

ब्रेन में ह्यूमर था 
ट्यूमर नहीं 

इंटरनेट महंगा था और
खुशियां सस्ती 

मुझे भोगों का 
विनाश 
और मनुष्य का 
विकास चाहिए 

मुझे विकास चाहिए ।

कुमार अनेकान्त
23/2/2023

Monday, February 20, 2023

महावीर होने का मतलब

*महावीर होने का मतलब*
महावीर होने का मतलब है गलत बात को स्वीकार न करना ,पाखंड को स्वीकार न करना ,ऐसा कोई भी क्रिया कांड न करना जिससे दूसरे जीवों को जरा सी भी तकलीफ हो ।

महावीर होने का मतलब है खुद को जानने की कोशिश करना ,उसके लिए शरीर से भी आसक्ति समाप्त करना और अपनी शुद्ध आत्मा का अनुभव करना ।

महावीर होने का मतलब है जब तक संसार में हैं तब तक यहां रहते हुए भी निर्विकार रहना । संसार में उसी तरह निर्लिप्त रहना जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न रह कर खिलता है । 

महावीर का मतलब है करुणा,दया और सेवा की भावना से सभी जीवों के जीने के अधिकारों की रक्षा करना ,अपने तुच्छ सुख के लिए उनकी जान नहीं लेना ।

महावीर होने का मतलब है कर्तृत्व बुद्धि न होना ,जगत के स्वतः परिणमन को सहज स्वीकार करना । प्रत्येक द्रव्य को स्वतंत्र मानना।

महावीर होने का अर्थ है दूसरों को क्षमा कर देना और अपने अपराधों की क्षमा मांगना ।

महावीर होने का मतलब है प्रत्येक जीव में परमात्मा का दर्शन करना ।

यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो महावीर कहते हैं कि 
आप भी महावीर हो सकते हैं ।


कुमार अनेकान्त
21/2/23