Monday, June 21, 2021

पिता नहीं भगवान हैं वे

आज पिता दिवस पर 
पिता नहीं भगवान् हैं वे 

- कुमार अनेकांत© 

पिता नहीं भगवान् हैं वे 
भले ही एक इंसान हैं वे 
ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं 
मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे 

जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं
मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे
आगम पढ़ाया आप्त समझाया
श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे 

मम मन समझें मनोविज्ञानी
मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे 
मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र
दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे 

मेरे तीनों काल को जाने 
मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे 
कोई चाहे कुछ भी कह ले
मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे 

पाठकों से निवेदन - 

   छंद नहीं अनुभूति देखें 
   शब्द नहीं भाव को परखें 
   जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे 
   अकवि की भी कविता देखें ।

Saturday, June 19, 2021

श्रुत पंचमी हो गई

*श्रुत पंचमी हो गई* !

खूब पूजा हुई ,
सेमिनार हुए,
व्याख्यान प्रवचन हुए ,
पर 
उस दिन से 
कोई नई पाठशाला चालू हुई ?
कोई नई शास्त्र सभा प्रारम्भ हुई ? 
यदि जहां हाँ है तो श्रुत पंचमी सार्थक हुई 
यदि नहीं तो 
शुरू करो 
और 
श्रुत पंचमी सार्थक करो ।

🙏कुमार अनेकान्त

शुभ परिणय उत्सव ( प्राकृत कविता )

सुह-परिणओस्सवो
(शुभ परिणय उत्सव )

सरीरजुदो आदा य , मणाभिण्णो जइ परिणयजीवणे ।
संसारधण्णो वि सिय ,जइ उहयो धम्मे वि रमन्ति।।

भावार्थ 

(यद्यपि) परिणय जीवन में (दोनों का )शरीर भी अलग है और आत्मा भी किन्तु यदि मन अभिन्न है और दोनों धर्म में भी रमण करते हैं तो यह (असार ) भी स्यात् (कथंचित्)  सारभूत  है ।

अनंत शुभकामनाओं के साथ 

प्रो डॉ अनेकान्त जैन एवं डॉ रुचि जैन

Friday, June 11, 2021

शास्त्र संरक्षण श्रुत पंचमी प्राकृत

*सुयपंयमी महोस्सवो*

*जिणवयणरक्खणत्थं वायणपिच्छणामणायभावणा* ।
*पवयणं य कादव्वं मुख्खेण सह मा सत्तथ्थं* ।।

भावार्थ :

जिनेन्द्र भगवान के वचनों (शास्त्रों) की रक्षा के लिए (प्रतिदिन) उसे पढ़ना चाहिए, उस पर जिज्ञासा करनी चाहिए,उसका पाठ करके उसे कंठस्थ करना चाहिए , उसके विषय की भावना ( अनुप्रेक्षा ) करनी चाहिए , दूसरों को उसके विषय पर प्रवचन देना चाहिए और मूर्खों से शास्त्रार्थ बिल्कुल नहीं करना चाहिए । 

श्रुत पंचमी प्राकृत भाषा दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ।

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,
(संपादक - पागद भासा)
आचार्य - जैन दर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली 

एवं 

डॉ रुचि अनेकान्त जैन
जिन फाउंडेशन, नई दिल्ली

Tuesday, June 8, 2021

मोहो

संसारे णत्थि सुहं 
णाणमवि भासइ सो अत्थि मोहो ।
णियणाणेण सो णसइ,
णट्ठेण खलु हवइ मोक्खं ।।

संसार में सुख नहीं है यह जानकर भी उसमें  सुख भासित होता है यही मोह है । वह मोह निजातम के ज्ञान से नष्ट होता है । और उस उसके नष्ट होने से ही मोक्ष होता है । 

कुमार अनेकान्त
9/06/2021

अश्क ए बयां

*अश्क ए बयां*

*ये हुनर कहाँ से लाते हैं हुस्ने अश्क ?* 
*दर्द ए कोह तक ढहा देते हैं।*
*रहमानों की हालत न पूछो सनम* 
*ये तो क़त्ल कातिलों के कर देते हैं।।* 


✍️ कुमार अनेकान्त