सुह-परिणओस्सवो
(शुभ परिणय उत्सव )
सरीरजुदो आदा य , मणाभिण्णो जइ परिणयजीवणे ।
संसारधण्णो वि सिय ,जइ उहयो धम्मे वि रमन्ति।।
भावार्थ
(यद्यपि) परिणय जीवन में (दोनों का )शरीर भी अलग है और आत्मा भी किन्तु यदि मन अभिन्न है और दोनों धर्म में भी रमण करते हैं तो यह (असार ) भी स्यात् (कथंचित्) सारभूत है ।
अनंत शुभकामनाओं के साथ
प्रो डॉ अनेकान्त जैन एवं डॉ रुचि जैन
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