*सुयपंयमी महोस्सवो*
*जिणवयणरक्खणत्थं वायणपिच्छणामणायभावणा* ।
*पवयणं य कादव्वं मुख्खेण सह मा सत्तथ्थं* ।।
भावार्थ :
जिनेन्द्र भगवान के वचनों (शास्त्रों) की रक्षा के लिए (प्रतिदिन) उसे पढ़ना चाहिए, उस पर जिज्ञासा करनी चाहिए,उसका पाठ करके उसे कंठस्थ करना चाहिए , उसके विषय की भावना ( अनुप्रेक्षा ) करनी चाहिए , दूसरों को उसके विषय पर प्रवचन देना चाहिए और मूर्खों से शास्त्रार्थ बिल्कुल नहीं करना चाहिए ।
श्रुत पंचमी प्राकृत भाषा दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,
(संपादक - पागद भासा)
आचार्य - जैन दर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली
एवं
डॉ रुचि अनेकान्त जैन
जिन फाउंडेशन, नई दिल्ली
No comments:
Post a Comment