Saturday, December 26, 2020

प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्

सादर प्रकाशनार्थ

*पागद- णूयणवस्साहिणंदणं*

(प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्)

प्रो.अनेकान्त जैन, नई दिल्ली

पंचत्थिकायलोये ,संदंसणं सिक्खदि समयसारो।
णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो ।।1।।

'पंचास्तिकाय' स्वरूपी इस जगत में 'समयसार' सम्यग्दर्शन सिखाते है,'प्रवचनसार' सम्यग्ज्ञान और 'नियमसार' सम्यग्चारित्र सिखाते हैं ।।1।।

सिरिकुण्डकुण्डप्पं य , अट्ठपाहुडो य सिक्खदि तिरयणा।
रयणसारो य धम्मं ,भावं बारसाणुवेक्खा।।2।।

आचार्य कुन्दकुन्द आत्मा सिखाते हैं,'अष्टपाहुड' रत्नत्रय सिखाते हैं , 'रयणसार' धर्म  और 'बारसाणुवेक्खा' भावना सिखाते हैं ।।2।।

सज्झायमवि सुधम्मो, पढउ कुण्डकुण्डमवि णववस्सम्मि।
करिदूण दसभत्तिं य,अणुभवदु संसारम्मि सग्गसुहं।।3।।

स्वाध्याय भी सम्यक धर्म है ,अतः नव वर्ष में आचार्य कुन्दकुन्द को भी अवश्य पढ़ें और उनके द्वारा रचित 'दशभक्ति' करके संसार में ही स्वर्ग सुख का अनुभव करें ।

पासामि उसवेलाए , संणाणसुज्जजुत्तो णववस्सं ।
होहिइ पाइयवस्सं, आगमणवसुज्जं उदिस्सइ ।।4।।

मैं उषा बेला में सम्यग्ज्ञान रूपी सूर्य से युक्त नववर्ष को देखता हूँ जो प्राकृत भाषा के वर्ष के रूप में होगा और आगम ज्ञान का नया सूर्य उगेगा ।

Wednesday, December 23, 2020

णमो कुण्डकुण्डाणं

*णमो कुण्डकुण्डाणं*

*पंचत्थिकायलोये ,सम्मदंसणो अत्थि समयसारो।*
*णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो* ।।1।।

*कुण्डकुण्डायरियो य , रयणत्तयं अत्थि अट्ठपाहुडो*।
*रयणसारो य धम्मं ,भावो बारसाणुवेक्खा* ।।2।।* 

भावार्थ -

पंचास्तिकाय स्वरूपी इस जगत में समयसार सम्यग्दर्शन है,प्रवचनसार सम्यग्ज्ञान है और निश्चित ही नियमसार सम्यग्चारित्र है ।।1।।

कुन्दकुन्द आचार्य हैं,अष्टपाहुड रत्नत्रय हैं और रयणसार धर्म है तथा बारसाणुवेक्खा भावना है ।।2।।

डॉ अनेकान्त जैन 
24/12/2020
5:30am

Thursday, December 10, 2020

समकालीन प्राकृत कविता १० ,करुणा

करुणा 

(गाहा छंद )

करुणाभावे कूरो वि
हव‌इ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।

भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।

कुमार अनेकांत 
24/05/2020

समकालीन प्राकृत कविता 21 आत्म-सुख

*जह पहियो खलु पावइ,गिम्हम्मि छायासुहो तउवरम्मि ।*

*तह णाणी अप्पसुहं, सुयम्मि य दुक्खसंसारम्मि ।।*

जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से परेशान पथिक पेड़ के नीचे अवश्य ही छाया सुख का अनुभव करता है उसी प्रकार ज्ञानी इस दुखमय संसार में रहकर भी श्रुत ( शास्त्र ) आराधना में आत्म सुख का अनुभव करता है ।

कुमार अनेकान्त
11/12/2020