*णमो कुण्डकुण्डाणं*
*पंचत्थिकायलोये ,सम्मदंसणो अत्थि समयसारो।*
*णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो* ।।1।।
*कुण्डकुण्डायरियो य , रयणत्तयं अत्थि अट्ठपाहुडो*।
*रयणसारो य धम्मं ,भावो बारसाणुवेक्खा* ।।2।।*
भावार्थ -
पंचास्तिकाय स्वरूपी इस जगत में समयसार सम्यग्दर्शन है,प्रवचनसार सम्यग्ज्ञान है और निश्चित ही नियमसार सम्यग्चारित्र है ।।1।।
कुन्दकुन्द आचार्य हैं,अष्टपाहुड रत्नत्रय हैं और रयणसार धर्म है तथा बारसाणुवेक्खा भावना है ।।2।।
डॉ अनेकान्त जैन
24/12/2020
5:30am
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