अव्यक्त
- कुमार अनेकांत©
(२७/०६/२००६)
सबके बीच
बहुत कुछ कहा तुमने
बहुत कुछ कहा मैंने
सबने सुना
सबने समझा
पर जो
कहने के पीछे
अनकहा था
वो ही समझा तुमने
वो ही समझा मैंने
बातों के पीछे से
कितनी बातें की
तुमने मैंने
वो न सुनी किसी ने
न समझी किसी ने
कहीं यही संवाद
अध्यात्म तो नहीं
तुम्हारा मेरा
अव्यक्त
वीतराग तो नहीं !
(युवा दृष्टि में प्रकाशित )