*कितना धर्म हो रहा है ?*
- कुमार अनेकान्त
हे ! जिनवाणी,
हे ! पारस
हे ! जूम
हे ! फ़ेसबुक
हे ! व्हाट्सएप्प
तुमने बहुत कुछ देकर भी
हमसे कई चीजें छीन लीं
जैसे,
स्वाध्याय सभा में
बैठकर प्रवचन सुनना,खुद ग्रंथ पढ़ना,
सुबह जल्दी मंदिर जाकर अभिषेक देखने की ललक ,
साक्षात शांतिधारा
करने का आनंद,
साधु संतों के साक्षात दर्शन,
साक्षात शिविर,
संगोष्ठियां ,
तीर्थ यात्राएं,
साधर्मियों से मिलना जुलना
और बहुत कुछ ,
लॉक डाउन में
मिली वैसाखी
कब हमारा
एक मात्र सहारा
बन गयी ,
पता ही नहीं चला ।
जहां श्रावक बिना देव दर्शन के भोजन नहीं करते थे ,
अब
रजाई में चाय की चुस्कियों के साथ
शांतिधारा देखते हैं,
बिना घर से निकले ,
बिना कुछ खर्चे ,
बिना शरीर हिलाए
पूजन विधि विधान
हो रहा है ,
ऐसा लगता है
जैसे
पूरा मोक्षमार्ग
घर में ही घुस रहा है ,
हम बहुत खुश हैं
वाह !
कितना
धर्म हो रहा है ।