Wednesday, March 31, 2021

कितना धर्म हो रहा है ?

*कितना धर्म हो रहा है ?*
 
 - कुमार अनेकान्त 

हे ! जिनवाणी,
हे ! पारस
हे ! जूम
हे ! फ़ेसबुक
हे ! व्हाट्सएप्प
तुमने बहुत कुछ देकर भी
हमसे कई चीजें छीन लीं
जैसे,
स्वाध्याय सभा में
बैठकर प्रवचन सुनना,खुद ग्रंथ पढ़ना,
सुबह जल्दी मंदिर जाकर अभिषेक देखने की ललक ,
साक्षात शांतिधारा 
करने का आनंद,
साधु संतों के साक्षात दर्शन,
साक्षात शिविर,
संगोष्ठियां ,
तीर्थ यात्राएं,
साधर्मियों से मिलना जुलना 
और बहुत कुछ ,
लॉक डाउन में 
मिली वैसाखी
कब हमारा 
एक मात्र सहारा 
बन गयी ,
पता ही नहीं चला ।
जहां श्रावक बिना देव दर्शन के भोजन नहीं करते थे ,
अब 
रजाई में चाय की चुस्कियों के साथ 
शांतिधारा देखते हैं,
बिना घर से निकले ,
बिना कुछ खर्चे ,
बिना शरीर हिलाए 
पूजन विधि विधान
हो रहा है ,
ऐसा लगता है 
जैसे
पूरा मोक्षमार्ग 
घर में ही घुस रहा है ,
हम बहुत खुश हैं 
वाह !
कितना
धर्म हो रहा है ।

Sunday, March 28, 2021

प्रिये ! मैं कैसे होली मनाऊं ?

*प्रिये !मैं कैसे होली मनाऊं ?* 

© कुमार अनेकान्त 

बीते साल मौत का मंजर देखा ,
उस दुख को भुला न पाऊँ।
कोरोना ने दिखाए कितने रंग,
बोलो कौन सा रंग लगाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कितने मजदूरों का दम टूटा ,
कितने बच्चों का दामन छूटा ।
कितनों की छूटी रोजी रोटी,
मैं कैसे खुशियां मनाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कितने संतों ने ली अंतिम सांसें , कितने परिजनों की छूटी सांसें ।
कितने गए अकाल 
जहां से ,
किस किस की याद दिलाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ? 

कोई घर का गुजर है जाता ,
तो अगला हर त्योहार अनरय कहाता ।
पूरा जगत संकट में समाये,
तब मैं कैसे रंग लगाऊं ?

प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं  ?

Monday, March 22, 2021

कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं


कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं 

@कुमार अनेकान्त 

कह नहीं पाते पर महसूस करते हैं ,
पेड़ जरा ज्यादा मासूम होते हैं ।
कम कमाते हैं लुटते हैं बहुत ज्यादा,
सच्चे आशिक से महरूम होते हैं ।।1।।

टेढ़े जो थे वे सदा बचते ही रहे,
अकाजी कब जाल में फंसते हैं ?
जिनकी फितरत है सदा सीधे रहना ,
उनकी गर्दन पे ही आरे चलते हैं ।।2।।

खुदगर्ज है जिनकी ईमानदारी,
वे गरीबी को भी ऐय्याशी कहते हैं ।
ईमान बन गया है जिनकी कमजोरी,
वो ही बेईमानों से जलन रखते हैं ।।3।।




Saturday, March 20, 2021

ख्वाहिशें नई नई

ख्वाहिशें नई नई

©कुमार अनेकान्त 
21/03/2021

आये तेरे दर पे परेशां ख्वाहिशों से ,
सजदे में मांग बैठे ख्वाहिशें नई नई ।

न कुछ ले न दे मुरताज़ इस जहां में ,
कैसे मुक्कमल होंगी हसरतें नई नई ।।

बिन हमसरी मुफ़लिस ही गए दर से ,
लेकर कहाँ से आएं इबादत नई नई ।

खुद को बिना जाने खुदा कैसे जानें ?
बुतों में ही खोजते हैं सूरत नई नई ।।

हर कोई है परेशां अपनी ही हसरतों से ,
अब कांटों में ही खुश हैं,
चाहतें नई नई ।।

Saturday, March 13, 2021

मन मेरा डूबता रहा

मन मेरा 
डूबता रहा 

©Kumar Anekant 
13/3/2021

नादान था जो
तुझ में खुद को खोजता रहा ।
मदहोश था पत्थर में दरिया ढूढ़ता रहा ।।1।।

वो मुझे अपनी तरह 
समझता रहा मुल्हिद ।
मैं जिसे खुदा समझकर पूजता रहा ।।2।।

धन की न थी शक्ति तो करता भला मैं क्या ?
मनोबल से ही हर जंग को जीतता रहा ।।3।।

वक्त से पहले नहीं मिलता पता ये था ।
फिर भी ये मन उसे हमेशा खोजता रहा ।।4।।

तैरना आता था मुझको फिर भी न जाने क्यों ?
गंगा में उसकी मन मेरा ये
डूबता रहा ।।5।।