*प्रिये !मैं कैसे होली मनाऊं ?*
© कुमार अनेकान्त
बीते साल मौत का मंजर देखा ,
उस दुख को भुला न पाऊँ।
कोरोना ने दिखाए कितने रंग,
बोलो कौन सा रंग लगाऊं ?
प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं ?
कितने मजदूरों का दम टूटा ,
कितने बच्चों का दामन छूटा ।
कितनों की छूटी रोजी रोटी,
मैं कैसे खुशियां मनाऊं ?
प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं ?
कितने संतों ने ली अंतिम सांसें , कितने परिजनों की छूटी सांसें ।
कितने गए अकाल
जहां से ,
किस किस की याद दिलाऊं ?
प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं ?
कोई घर का गुजर है जाता ,
तो अगला हर त्योहार अनरय कहाता ।
पूरा जगत संकट में समाये,
तब मैं कैसे रंग लगाऊं ?
प्रिये !
मैं कैसे होली मनाऊं ?
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