Saturday, March 20, 2021

ख्वाहिशें नई नई

ख्वाहिशें नई नई

©कुमार अनेकान्त 
21/03/2021

आये तेरे दर पे परेशां ख्वाहिशों से ,
सजदे में मांग बैठे ख्वाहिशें नई नई ।

न कुछ ले न दे मुरताज़ इस जहां में ,
कैसे मुक्कमल होंगी हसरतें नई नई ।।

बिन हमसरी मुफ़लिस ही गए दर से ,
लेकर कहाँ से आएं इबादत नई नई ।

खुद को बिना जाने खुदा कैसे जानें ?
बुतों में ही खोजते हैं सूरत नई नई ।।

हर कोई है परेशां अपनी ही हसरतों से ,
अब कांटों में ही खुश हैं,
चाहतें नई नई ।।

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