ख्वाहिशें नई नई
©कुमार अनेकान्त
21/03/2021
आये तेरे दर पे परेशां ख्वाहिशों से ,
सजदे में मांग बैठे ख्वाहिशें नई नई ।
न कुछ ले न दे मुरताज़ इस जहां में ,
कैसे मुक्कमल होंगी हसरतें नई नई ।।
बिन हमसरी मुफ़लिस ही गए दर से ,
लेकर कहाँ से आएं इबादत नई नई ।
खुद को बिना जाने खुदा कैसे जानें ?
बुतों में ही खोजते हैं सूरत नई नई ।।
हर कोई है परेशां अपनी ही हसरतों से ,
अब कांटों में ही खुश हैं,
चाहतें नई नई ।।
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