Monday, May 16, 2022

खुदाई का हर पत्थर बोलेगा

*खुदाई का हर पत्थर बोलेगा*

दबा ले कोई कितना भी 
एक रोज़ उभर के निकलेगा 
शासन था जिनेन्द्र का 
खुदाई का हर पत्थर बोलेगा 

तीर्थ जो हैं संभलते नहीं 
नए को कौन संभालेगा ?
जैन हैं मुट्ठीभर बिखरे से 
हड़पे को कौन निकालेगा ?

उलझे पंथों के झगड़े में 
अस्तित्व कौन बचाएगा ?
कुल्हाड़ी अपने ही पैरों पर 
गर मारे तो कहाँ जायेगा ? 

चेतन हो गए गर जड़ ,
तो मोक्ष कौन जाएगा ?
निठल्ले हों गर पूत 
तो धर्म कौन बचाएगा ? 

©कुमार अनेकान्त

Sunday, May 1, 2022

कृष्णलाल जागीण की रचना

मित्रवर कृष्ण लाल जागीण ने यह पढ़कर साहित्यकारों के whatsaap ग्रुप अथाई में निम्नलिखित पंक्तियां लिखकर भेजी हैं 

श्रद्धेय कुमार शिरोधार्य आदेश।
समरस जीवन का पावन सन्देश।
अनुकूल प्रतिकूल में बोध विशेष।
जीवनसिन्धु मन्थन कुछ ना शेष।
मर्मज्ञ कवि डॉ.कुमार अनेकान्त।
चंचल मन की उलझनें हुई शान्त।
कुशल हैं उत्तम काव्य रचनाकार।
मार्मिकता सूक्ष्म शब्द के संस्कार।
रखते हो पावन हृदय के पूरे उद्गार।
अनेक से एक श्रेष्ठ भुवन सुविचार।
नेक दिल कमल साहित्य सरोवर।
कान्ति शाश्वत आनन पर कविवर।
न्यास नवीन अनुकरणीय आदर्श।
तत्व बोधक हम करें चरणस्पर्श।।