*खुदाई का हर पत्थर बोलेगा*
दबा ले कोई कितना भी
एक रोज़ उभर के निकलेगा
शासन था जिनेन्द्र का
खुदाई का हर पत्थर बोलेगा
तीर्थ जो हैं संभलते नहीं
नए को कौन संभालेगा ?
जैन हैं मुट्ठीभर बिखरे से
हड़पे को कौन निकालेगा ?
उलझे पंथों के झगड़े में
अस्तित्व कौन बचाएगा ?
कुल्हाड़ी अपने ही पैरों पर
गर मारे तो कहाँ जायेगा ?
चेतन हो गए गर जड़ ,
तो मोक्ष कौन जाएगा ?
निठल्ले हों गर पूत
तो धर्म कौन बचाएगा ?
©कुमार अनेकान्त