*मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा*
@कुमार अनेकान्त
22/08/2020
मत खुलने दो चैत्यालय मंदिर ,
मैं फिर भी दर्शन कर लूंगा ।
जो रूप बसाया है चित्त में,उसकी अनुभूति कर लूंगा ।।
मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा ।
महामारी ने हमें संसार का, वास्तविक स्वरूप दिखाया है ।
क्रिया कांड से परे धर्म का ,
मूल स्वरूप समझाया है ।।
मैं प्रक्षाल स्वयं के दोषों का ,
प्रतिदिन प्रातः कर लूंगा ।
निज चैतन्य की शांति धारा कर,
व्रतों की बोली ले लूंगा ।।
मैं फिर भी अभिषेक कर लूंगा ।
युग बीता मंदिर जाते,किन्तु न आतम बोध हुआ ।
स्वाध्याय सुना पर किया नहीं ,
बस क्रियाओं में ही
उलझा हुआ ।।
अब कोई अवलंबन नहीं , मैं खुद ही मंदिर हो लूंगा ।
गुरु चरणों को भी,
आचरण से अपने छू लूंगा ।।
मैं खुद ही मंदिर हो लूंगा ।
हमने दसलक्षण बहुत किये ,
पर मन दसलक्षण नहीं हुआ ।
व्रत पर्वों पर भी
मंदिर में,
बस मान आदि ही पुष्ट हुआ ।।
अब क्रोध मान माया लोभ का ,
पूर्ण समर्पण कर दूंगा ।
इनके अभाव से स्वयं ही अब मैं आत्मदर्शन कर लूंगा ।।
मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा ।मैं इस तरह दसलक्षण कर लूंगा।।
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