मन मेरा
डूबता रहा
©Kumar Anekant
13/3/2021
नादान था जो
तुझ में खुद को खोजता रहा ।
मदहोश था पत्थर में दरिया ढूढ़ता रहा ।।1।।
वो मुझे अपनी तरह
समझता रहा मुल्हिद ।
मैं जिसे खुदा समझकर पूजता रहा ।।2।।
धन की न थी शक्ति तो करता भला मैं क्या ?
मनोबल से ही हर जंग को जीतता रहा ।।3।।
वक्त से पहले नहीं मिलता पता ये था ।
फिर भी ये मन उसे हमेशा खोजता रहा ।।4।।
तैरना आता था मुझको फिर भी न जाने क्यों ?
गंगा में उसकी मन मेरा ये
डूबता रहा ।।5।।
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