कुमार अनेकान्त की कवितायें
Thursday, December 10, 2020
समकालीन प्राकृत कविता १० ,करुणा
करुणा
(गाहा छंद )
करुणाभावे कूरो वि
हवइ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।
भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।
कुमार अनेकांत
24/05/2020
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