Thursday, December 10, 2020

समकालीन प्राकृत कविता 21 आत्म-सुख

*जह पहियो खलु पावइ,गिम्हम्मि छायासुहो तउवरम्मि ।*

*तह णाणी अप्पसुहं, सुयम्मि य दुक्खसंसारम्मि ।।*

जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से परेशान पथिक पेड़ के नीचे अवश्य ही छाया सुख का अनुभव करता है उसी प्रकार ज्ञानी इस दुखमय संसार में रहकर भी श्रुत ( शास्त्र ) आराधना में आत्म सुख का अनुभव करता है ।

कुमार अनेकान्त
11/12/2020

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