Monday, May 18, 2020

समकालीन प्राकृत कविता – ८ ‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’


समकालीन प्राकृत कविता – ८

        (उग्गाहा छंद )

‘मेरा सो जावे नहीं ,जावे सो मेरा नहीं’

अप्पसहावो गच्छइ ,ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |
जो गच्छइ सो य ण मम,जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||

भावार्थ –

आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |

@कुमार अनेकांत 
17/05/2020

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