*अथाई*
काव्य का है बीज पर हुई नहीं सिंचाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।
नवोदित और उदित
का संगम,
सार्वभौमिक सुरों का सरगम ।
कैद रचनाएं चाहतीं थीं वर्षों से रिहाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।
आज नहीं तो कल मानेगा,
विश्व हिंदी का दास बनेगा ।
देखेगा भारत की
साहित्यिक तरुनाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।
कबीर प्रसाद निराला बसते,
मीरा महादेवी
सुभद्रा रमते ।
छुपे हैं अब तो हर दिल में परसाई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।
दौलत भूधर बनारसी दास गढ़ेंगे,
सूर,तुलसी,रहीम
अब बन कर रहेंगे ।
रचेंगे अब तो महाकाव्य,
और बिहारी सा सत्साई,
नवांकुर सींचती अखिल पहल अथाई ।।
कुमार अनेकांत©️
३/५/२०२०
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