Saturday, May 23, 2020

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

समकालीन प्राकृत कविता ११ , करुणा

(गाहा छंद )

करुणाभावे कूरो वि
हव‌इ वीयराओ वि संसारम्मि ।
एगेण हवइ अहोगइ
एगेण य मोक्खो णियमेण ।।

भावार्थ -
इस संसार में जीव करुणा के अभाव में क्रूर भी होता है और वीतराग भी ।
एक से निश्चित ही अधोगति है और एक से नियम से मोक्ष होता है ।

कुमार अनेकांत 
24/05/2020

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