Monday, February 12, 2024

निजदोषों का दर्शन ( प्राकृत गाथा )

दस्सदि खलु णियदोसं ,
सज्झायेण णाभावदोसाणं ।
अभावो य होदि तस्स ,
तवचरित्ताप्पाणुभवेण ।।

स्वाध्याय से निजदोषों का दर्शन तो होता है किंतु उन दोषों का अभाव नहीं होता ,उन दोषों का अभाव तप चारित्र और आत्मानुभव से ही होता है । 

©कुमार अनेकांत
12/2/24

No comments:

Post a Comment