*वो बदल सा जाता है*
© कुमार अनेकान्त
(6/07/2021)
खुद को ही देखते देखते,
जवां मौसम ढल सा जाता है ।
अंदाज़ अपने आईने में देखकर ,
गुरूर हुस्न का बढ़ सा जाता है ।।
कीमत नहीं समझते ,
रहता है जो नज़दीक ।
जुदाई में अक्सर उसका ,
एहसान याद आता है ।।
जिसको पालो घर पर,
कितना भी अपना समझकर ।
गैरों की छत पाते ही,
वो बदल सा जाता है ।।
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