Tuesday, July 6, 2021

अंदाज़

*वो बदल सा जाता है*

© कुमार अनेकान्त
    (6/07/2021)

खुद को ही देखते देखते,
जवां मौसम ढल सा जाता है ।
अंदाज़ अपने आईने में देखकर ,
गुरूर हुस्न का बढ़ सा जाता है ।।

कीमत नहीं समझते ,
रहता है जो नज़दीक ।
जुदाई में अक्सर उसका ,
एहसान याद आता है ।।

जिसको पालो घर पर,
कितना भी अपना समझकर ।
गैरों की छत पाते ही,
वो बदल सा जाता है ।।

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