Monday, May 31, 2021

भ्रूण हत्या (समकालीन प्राकृत कविता)

भूणहिंसाकेवलं,ण हवदि खलु दयाहीणे कलजुगे  ।
हिये वयपणं वि मरदि ,उजुहिययं दुल्लहा लोये ।।

निश्चित ही इस दयाहीन कलयुग में केवल भ्रूण हिंसा ही नहीं होती है बल्कि हृदय में बचपन भी मरता है,(क्यों कि)अब लोक में सरल हृदय मिलना दुर्लभ हो गया है ।

©कुमार अनेकान्त
1/06/2021



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